कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने और दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद का घटनाक्रम भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गया है। भाजपा ने सोचा नहीं होगा कि जाने अनजाने में यह इतना बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन जाएगा। तभी सजा होने और लोकसभा की सदस्यता समाप्त होने के बाद जब कांग्रेस ने सजा के खिलाफ अपील करने की बजाय विरोध प्रदर्शन शुरू किया तो भाजपा को समझ नहीं आया कि वह क्या करे। पहले भाजपा नेताओं को लग रहा था कि सजा सुनाई जाएगी तो कांग्रेस के वकील भागदौड़ करेंगे और ऊपर की अदालत से रोक लगवा लेंगे, जैसे उन्होंने पवन खेड़ा की गिरफ्तारी के मामले में किया था लेकिन इतने भर से मैसेज देने का काम हो जाएगा। लेकिन कांग्रेस ने पहले तो अपील नहीं की, दूसरे प्रदर्शन शुरू कर दिया और तीसरे, चारों तरफ से कांग्रेस और राहुल को समर्थन मिलने लगा।
तभी भाजपा के हर नेता ने कहना शुरू किया कि कांग्रेस सजा के खिलाफ अपील क्यों नहीं कर रही है? भाजपा नेताओं की इस बेचैनी को देख कर सोशल मीडिया में बहुत मीम्स बने, जिसमें यह कहा जाने लगा कि अगर कांग्रेस अपील नहीं करती है तो भाजपा के नेता ही उनकी सजा पर रोक लगवाने पहुंच जाएंगे। बहरहाल, कांग्रेस ने 12 दिन के बाद अपील का फैसला किया तो उसने इसे एक बड़े इवेंट में तब्दील कर दिया। इससे अलग भाजपा की परेशानी बढ़ी। राहुल के अपनी बहन प्रियंका और तीन मुख्यमंत्रियों के साथ सूरत जाने पर भाजपा ने प्रेस कांफ्रेंस की। संबित पात्रा ने इसे न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश करार दिया। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने पांच ट्विट की एक कड़ी में यह सवाल उठाया कि क्यों पूरी कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के पीछे खड़ी है, जबकि पहले के नेताओं पर कार्रवाई हुई तो कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया था। ऐसा लग रहा है कि भाजपा अब चाहती है कि चुपचाप मामला निपटे। लेकिन कांग्रेस मामला निपटाने के मूड में नहीं है।