कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दो पद पर बनाए रखने का कांग्रेस का फैसला सही साबित हुआ है। पार्टी ने एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत का अपवाद खड़गे के लिए बनाया। वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और साथ ही राज्यसभा में नेता विपक्ष भी हैं। संसद के बजट सत्र के पहले चरण में एक बार फिर प्रमाणित हुआ है कि खड़गे विपक्ष को एकजुट करने में कामयाब हैं। बजट पेश होने के बाद से ही वे लगातार विपक्षी पार्टियों के साथ बैठक करते रहे और पहले चरण के आखिरी दिन तक विपक्ष की पार्टियों ने उनके चैंबर में बैठ कर अपनी रणनीति बनाई। गुलाम नबी आजाद के बाद जब खड़गे को नेता बनाया गया था तब से ही वे विपक्ष को बेहतर तरीके से एकजुट कर रहे हैं।
लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनका कद और बढ़ा है। वे ज्यादा ऑथोरिटी के साथ अब विपक्ष की राजनीति कर रहे हैं। उनके प्रयासों का नतीजा है कि उनकी हर बैठक में 15 विपक्षी पार्टियां जमा हुईं। यहां तक कि आम आदमी पार्टी और भारत राष्ट्र समिति के सांसद भी उनकी बैठक में शामिल हुए। अदानी के मसले पर चर्चा में भाग लेने के मसले पर भले आम आदमी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट ने अलग स्टैंड लिया लेकिन सरकार को घेरने, सदन में मुद्दा उठाने और संसद भवन परिसर में प्रदर्शन करने में ये तीनों पार्टियां भी कांग्रेस के साथ रहीं। कांग्रेस के ईर्द-गिर्द विपक्ष की एकजुटता बनने से कांग्रेस की मजबूती का मैसेज बन रहा है। खड़गे भी इसका फायदा उठा रहे हैं और उन्होंने सरकार के साथ टकराव बढ़ाया है।