इस साल जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं वहां भाजपा के तीनों शीर्ष नेताओं ने पूरा दम लगाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे हैं। उनकी रैलियां हो रही हैं और रोड शो हो रहे हैं। अगर सिर्फ कर्नाटक को देखें, जहां अगले महीने चुनाव घोषित होने वाले हैं तो वहां हफ्ते में दो दिन जरूर भाजपा के तीन शीर्ष नेताओं में से किसी एक का कार्यक्रम हो रहा होता है। इसके बरक्स कांग्रेस में पूरी तरह से शांति है। किसी राष्ट्रीय नेता का कोई कार्यक्रम कर्नाटक या किसी अन्य चुनावी राज्य में नहीं हो रहा है।
कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस की चुनाव रणनीति भाजपा से अलग है। भाजपा में उसके शीर्ष नेता राज्यों का चुनाव लड़वाएंगे, जबकि कांग्रेस में राज्यों के ही नेता चुनाव लड़वाएंगे। कांग्रेस के शीर्ष राष्ट्रीय नेता राज्यों के चुनाव में गेस्ट अपीयरेंस देंगे यानी मेहमान भूमिका निभाएंगे। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की चुनावी रैलियां और रोड शो होंगे लेकिन ऐसा नहीं है कि ये दोनों जी-जान लगा कर पार्टी को चुनाव लड़ाएंगे, जैसे भाजपा के नेता कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि प्रदेश के नेताओं को ही अपने शीर्ष नेतृत्व पर भरोसा नहीं है। उनको लग रहा है कि राहुल और प्रियंका से ज्यादा करिश्मा या जमीनी पकड़ उनकी है इसलिए उन्हीं को चुनाव लड़ाना चाहिए।
कांग्रेस के जानकार नेताओं के मुताबिक कर्नाटक का चुनाव प्रदेश अध्यक्ष डीक शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया लड़वाएंगे। प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला की भी सीमित भूमिका होगी। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के ही रहने वाले हैं लेकिन चुनाव में वे भी बड़ी भूमिका नहीं निभाने वाले हैं। ध्यान रहे अध्यक्ष बनने के बाद उनके स्वागत कार्यक्रम के अलावा उनकी कोई बड़ी रैली या रोड शो वगैरह नहीं हुआ। वे अपने कुछ करीबियों को टिकट दिलवाएंगे और चुनाव के समय कुछ रैलियां कर देंगे।
अगले साल छत्तीसगढ़ में भी चुनाव हैं और यह तय है कि वहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव लड़वाएंगे। वहां भी चुनाव में राहुल, प्रियंका सिर्फ रैली करने जाएंगे। प्रभारी महासचिव का भी कोई काम नहीं होगा। मध्य प्रदेश में सब कुछ कमलनाथ को सौंप दिया गया है। जो करेंगे कमलनाथ करेंगे। कहीं कहीं थोड़ी भूमिका दिग्विजय सिंह की भी होगी लेकिन बाकी किसी नेता का कोई रोल नहीं है। राजस्थान में प्रदेश नेतृत्व को लेकर कंफ्यूजन है लेकिन यह तय है कि चुनाव में केंद्रीय नेताओं की कोई भूमिका नहीं रहने वाली है। इसी तरह हरियाणा में सब कुछ भूपेंदर सिंह हुड्डा के हवाले हैं। उनके अलावा किसी नेता का कोई मतलब नहीं रहने वाला है। लगभग सभी राज्यों की स्थिति यही है।