bihar elections : बिहार में वैसे तो विधानसभा का चुनाव नवंबर में होना है लेकिन एक बार फिर समय से पहले विधानसभा का चुनाव होने की चर्चा शुरू हो गई है।
जिस दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक खेल समारोह में राष्ट्रगान के समय अजीबोगरीब हरकतें कीं, राष्ट्रगान के दौरान बगल में खड़े अपने सलाहकार दीपक कुमार से बात करने और सामने बैठे पत्रकारों को नमस्ते करने लगे, कहा जा रहा है कि उस दिन जल्दी चुनाव कराने की अनिवार्यता भाजपा को भी समझ में आई।
जनता दल यू के नेता तो पहले से चुनाव के लिए तैयार हैं। हकीकत यह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में 43 सीट पर सिमटने के बाद से ही नीतीश कुमार जल्दी चुनाव चाहते थे ताकि उनकी संख्या सुधरे। (bihar elections)
लगातार दो चुनाव में नंबर एक पार्टी और उसके बाद उसके बाद एक चुनाव में नंबर दो पार्टी रहने के बाद तीसरे नंबर की पार्टी बनना उनको ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन उनकी दोनों सहयोगी पार्टियों भाजपा और राजद ने इस पर ध्यान नहीं दिया था।
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बिहार का नया वारिस…
जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा पिछले कुछ दिन से इस बात का इंतजार कर रही थी कि नीतीश कुमार की शारीरिक और मानसिक अवस्था ठीक नहीं है तो उनको मना कर और उनके आसपास के सलाहकारों को समझा कर भाजपा उनसे मुख्यमंत्री पद छुड़ा लेगी।
वे इस्तीफा दे देंगे और भाजपा का मुख्यमंत्री बनवा देंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। नीतीश और उनके सलाहकार किसी हाल में मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं। (bihar elections)
इस बीच जनता दल यू की ओर से नीतीश के बेटे निशांत कुमार को आगे किया जा रहा है और पार्टी के वारिस के तौर पर पेश किया जा रहा है। इससे भी भाजपा को लग रहा है कि इस विधानसभा में भाजपा का मुख्यमंत्री बनाने का सपना पूरा नहीं होगा।
अगर भाजपा का गैर यादव चेहरा यानी सम्राट चौधरी मुख्यमंत्री बन जाते तो छह महीने में उनका नेतृत्व स्थापित करके उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा जाता और तब एनडीए की जीत की संभावना ज्यादा रहती। (bihar elections)
नीतीश कुमार अशक्त (bihar elections)
अगर नीतीश कुमार की पार्टी अभी भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं बनाती है तो छह महीने इंतजार करके चुनाव में जाना घातक हो जाएगा। नीतीश के बारे में बहुत तेजी से यह धारणा फैल रही है कि वे अशक्त हो गए हैं। उनको कुछ भी याद नहीं रहता है, वे लोगों को चेहरे नहीं पहचानते हैं और राजकाज वे नहीं चला रहे हैं।
पिछले एक साल में नीतीश के ऐसे आचरण के अनेक वीडियो सार्वजनिक हुए हैं, जिनसे उनमें लोगों का विश्वास कम हुआ है। अगर छह महीने और इंतजार करते हैं और इस अवधि में उनकी स्थिति ज्यादा बिगड़ती है तो एनडीए के लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा। (bihar elections)
तभी इस विकल्प पर भी विचार किया गया कि राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। इसी सोच में आरिफ मोहम्मद खान को राज्यपाल बनाया गया ताकि उनकी कमान में सरकार चले और चुनाव हो तो जाति का कोई मामला नहीं आए।
लेकिन जदयू इसके लिए तैयार नहीं है। नीतीश सीएम पद नहीं छोड़ना चाहते हैं। तभी कहा जा रहा है कि विधानसभा का चालू सत्र खत्म होने के बाद विधानसभा भंग कर दिया जाए और नीतीश कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहे। (bihar elections)
इसके बाद चुनाव आयोग मई के अंत तक विधानसभा चुनाव की घोषणा कर सकता है। इस तरह से नीतीश सीएम रहेंगे और नहीं भी रहेंगे और एनडीए उनको सीएम चेहरा घोषित किए बगैर चुनाव लड़ेगा। अघोषित चेहरा सम्राट चौधरी का होगा।