तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी अपने बयानों और अपने कामकाज से पार्टी के नेतृत्व को लगातार शर्मिंदा कर रहे हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि पार्टी और सरकार पर एकछत्र अधिकार मिलने के बावजूद वे राज्य की राजनीति को संभाल नहीं पा रहे हैं। उनकी अनुभवहीनता और बड़बोलेपन के कारण कांग्रेस को मुश्किल हो रही है। कई लोग उनके कामकाज को संदेह की नजर से देखने लगे हैं और याद दिलाने लगे हैं कि वे पहले राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में रहे हैं और सारा प्रशिक्षण वहां से मिला है।
उनके सबसे बड़े मददगार कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार हैं। शिवकुमार खुद ही कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने की मारकाट में उलझे हैं और इस साल के अंत में जब सिद्धारमैया के ढाई साल पूरे होंगे तब राज्य में टकराव बढ़ेगा।
बहरहाल, रेवंत रेड्डी को अब सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है और उनके एक बयान को लेकर कहा है कि यह संविधान की 10वीं अनुसूची का अपमान है। सोचें, एक तरफ कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी संविधान बचाने का अभियान चलाए हुए हैं और दूसरी ओर उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री संविधान को ताक पर रख कर मनमाने बयान दे रहे हैं। वही काम कर रहे हैं, जिस काम के लिए कांग्रेस पानी पी पीकर भाजपा को कोसती रही है।
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असल में रेवंत रेड्डी के मुख्यमंत्री बनने के भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस के नौ विधायक टूट कर कांग्रेस के साथ आ गए। कायदे से उनको इस्तीफा देना चाहिए और उपचुनाव में जाना चाहिए क्योंकि वे दलबदल कानून का उल्लंघन करके कांग्रेस में गए हैं। परंतु एक तो स्पीकर ने एक साल से ज्यादा समय से मामला लटका रखा है और दूसरी ओर रेवंत रेड्डी ने सदन में कहा है कि दलबदल करने वाले विधायकों को उपचुनाव नहीं लड़ना होगा।
ऐसा लग रहा है कि रेवंत रेड्डी अपनी सरकार के डेढ़ साल के कामकाज से अंदाजा हो गया है कि उपचुनाव में कांग्रेस हार सकती है। उनकी राजनीति के कारण बीआरएस को संजीवनी मिली है तो भाजपा भी मजबूत हुई दिख रही है।
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