भारत सरकार गरीबी रेखा का नया फॉर्मूला ले आई है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य डॉ. शामिका रवि ने इसका ऐलान किया है। उनका कहना है कि हर महीने शहरों में 1,410 रुपए और गांवों में 960 रुपए से कम खर्च करने वाला गरीब हैं। सोचें, यह कैसा फॉर्मूला है। सरकार कह रही है कि अगर शहरों में कोई व्यक्ति 42 रुपया रोज खर्च करने की स्थिति में है तो उसको गरीब नहीं माना जाएगा। देश के किसी भी शहर में 42 रुपया एक समय का खाना खाने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति इससे एक रुपया भी ज्यादा खर्च करता है तो सरकार उसको गरीब नहीं मानेगी। ऐसे ही गांवों में अगर कोई 32 रुपया रोज खर्च कर रहा है तब तो वह गरीब है लेकिन अगर 33 रुपया खर्च करता है तो वह गरीबी रेखा से ऊपर उठ गया माना जाएगा।
इस फॉर्मूले के आधार पर सरकार का दावा है कि भारत में अब सिर्फ चार फीसदी गरीब रह गए हैं और पिछले 12 साल में करीब 30 फीसदी लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाल दिया गया है। हैरानी है कि सरकार ने चार फीसदी लोगों को भी गरीबी रेखा के नीचे क्यों छोड़ा है? खर्च की सीमा को चार पांच रुपया और कम करके सबको गरीबी रेखा से बाहर निकाल देना चाहिए। केंद्र सरकार के इस फॉर्मूले की एक और दिलचस्प बात यह है कि इसके मुताबिक बिहार और उत्तर प्रदेश में कम गरीब हैं और इन दो राज्यों से ज्यादा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि राज्यों में गरीब हैं। यह कमाल की तकनीक है, जिससे ऑफिस में बैठे बैठे करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला जा सकता है। यह पूछा गया कि जब भारत में सिर्फ चार फीसदी लोग गरीब हैं तो 60 फीसदी लोगों को पांच किलो मुफ्त अनाज क्यों दिया जा रहा है तो भारत सरकार की महान अर्थशास्त्री शामिका रवि ने कहा कि पहले अनाज सड़ जाता है और अब बांट दिया जाता है। एक तरफ प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि गरीब लोगों को अनाज देकर उनकी भुखमरी दूर की जा रही है तो दूसरी ओर उनकी सलाहकार कह रही हैं कि अनाज सड़ जाता है इसलिए बांट दिया जा रहा है।