बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन दिनों भाजपा के साथ होने वाले एनडीए के हर कार्यक्रम में यह सफाई देते हैं कि उनकी पार्टी के लोगों ने दो बार गड़बड़ करा दी थी यानी दो बार एनडीए से अलग करा दिया था लेकिन अब वे ऐसी गलती नहीं करेंगे। यह बात उन्होंन 24 अप्रैल को मधुबनी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने भी कही। लेकिन इस बार उन्होंने नई बात जोड़ दी। उन्होंने अपनी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की ओर इशारा करके कहा कि इन्होंने तालमेल खत्म कराया था। नीतीश ने ललन सिंह की ओर इशारा करके कहा, ‘ये बैठे हैं इन्हीं से पूछ लीजिए’। प्रधानमंत्री के सामने इस तरह की बात ललन सिंह को शर्मिंदा करने वाली थी। लेकिन आजकल लोग नीतीश कुमार की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं क्योंकि मानसिक अवस्था ठीक नहीं है। फिर भी नीतीश के ऐसा कहने के पीछे कोई न कोई दांव तो है।
असलियत यह है कि बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा से दो बार तालमेल तोड़ा और दोनों बार फैसला नीतीश कुमार का अपना था। पहली बार नीतीश ने भाजपा से तालमेल 2013 में तोड़ा था। उससे पहले ललन सिंह ने नीतीश के खिलाफ बगावत की थी। वे 2010 में नीतीश से अलग हो गए थे और कांग्रेस की मदद कर रहे थे। उस समय ऐसी स्थिति थी कि नीतीश की पार्टी ने ललन सिंह की सदस्यता खत्म करने के लिए लोकसभा स्पीकर से अनुरोध किया था। लेकिन धीरे धीरे स्थिति बदली और 2013 में ही ललन सिंह वापस नीतीश के साथ लौटे। उस समय नीतीश कुमार की पार्टी के 116 विधायक थे और लोकसभा में 18 सांसद थे। इस वजह से उनसे हालात का अंदाजा लगाने में गलती हुई। उन्होंने पहले से नरेंद्र मोदी के खिलाफ स्टैंड लिया था और 2010 में बड़ी जीत से उनको लग रहा था कि मुस्लिम भी उनके साथ है। इसलिए उन्होंने वैचारिक मुद्दा बना कर भाजपा से नाता तोड़ लिया। 2014 के चुनाव में जब उनको झटका लगा और वे लोकसभा की दो सीट पर आ गए तो उन्होंने 2015 के विधानसभा के लिए राजद से तालमेल किया। भाजपा से तालमेल तोड़ने, अकेल लड़ने और फिर राजद से तालमेल का फैसला पूरी तरह से नीतीश का था।
नीतीश ने 2017 में राजद से तालमेल तोड़ कर वापस भाजपा से गठबंधन कर लिया। पांच साल तक भाजपा के साथ रहने के बाद 2022 में एक बार फिर नीतीश ने भाजपा से तालमेल तोड़ा। वह भी फैसला पूरी तरह से नीतीश का था और मंडल की राजनीति को बचाने के लिए थी। जानकार सूत्रों का कहना है कि मार्च 2022 में जब उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बनी तब नीतीश को लगा था कि मंडल की राजनीति समाप्त हो रही है। उनको लग रहा था कि 2017 की यूपी की जीत एक संयोग है। लेकिन 2022 में एक सवर्ण और कट्टर हिंदुवादी नेता के मुख्यमंत्री रहते भाजपा दूसरी बार जीती तो नीतीश ने फिर भाजपा से लड़ने का फैसला किया। उन्होंने यूपी के नतीजे के तुरंत बाद अपनी पार्टी के नेता विजेंद्र यादव को लालू प्रसाद के यहां भेजा और तालमेल की बात शुरू कराई। यह जरूर है कि राजद से तालमेल के बाद ललन सिंह की नजदीकी लालू प्रसाद से बढ़ी थी लेकिन भाजपा से तालमेल तोड़ने का फैसला नीतीश कुमार का अपना था।