यूपीए की दूसरी केंद्र सरकार के समय यानी 2009 के बाद जब सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे थे और आंदोलन शुरू हुए थे तब कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती थीं कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया जाए और उनको राष्ट्रपति बना दिया जाए। 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के समय सोनिया गांधी ने गंभीरता से इस पर विचार किया था लेकिन कई सहयोगी पार्टियों के रिजर्वेशन और विपक्षी पार्टियों के स्पष्ट विरोध की वजह से इस विचार को त्याग देना पड़ा था। वरिष्ठ पत्रकार गौतम लाहिड़ी ने प्रणब मुखर्जी के ऊपर किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम का जिक्र किया है। उनका कहना है कि खुद प्रणब मुखर्जी ने सोनिया गांधी को सलाह दी थी कि वे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर आगे नहीं करें क्योंकि वे चुनाव हार सकते हैं।
आमतौर पर कहा जाता है कि प्रणब मुखर्जी को सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहती थीं। लेकिन गौतम लाहिड़ी ने दावा किया है कि 2012 में सोनिया चाहती थीं कि प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनें और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाए। इस बारे में कई पार्टियों से विचार विमर्श भी किया गया। लाहिड़ी ने बताया है कि कई सहयोगी पार्टियों ने मनमोहन के नाम का विरोध किया था क्योंकि उस समय तक 2जी घोटाले और कोयला घोटाले की चर्चा शुरू हो गई थी। दूसरी ओर प्रणब मुखर्जी के नाम पर विपक्षी पार्टियों के नेता भी सहमत थे। लालकृष्ण आडवाणी, बाल ठाकरे और नीतीश कुमार ने प्रणब मुखर्जी को समर्थन देने पर सहमति जताई थी। इतना ही नहीं प्रणब मुखर्जी ने सोनिया गांधी को समझाया था कि उनके नाम पर तृणमूल कांग्रेस भी समर्थन करेगी। ऐसा ही हुआ था। अब सवाल है कि प्रधानमंत्री बनने की तीव्र लालसा के बावजूद प्रणब मुखर्जी ने क्यों इनकार किया? ऐसा लग रहा है कि उनको 2014 के चुनाव में हार का आभास हो गया था इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति बनने का फैसला किया।