Monday

31-03-2025 Vol 19

जाति के आंकड़ों पर सवाल

बिहार में जाति गणना के आंकड़े सामने आने के बाद उस पर कई तरह के सवाल भी उठने लगे हैं। एक तरफ यह कहा जा रहा है कि कहा जा रहा है कि इससे पिछड़ा राजनीति और मजबूती से स्थापित होगी, जिसका दौर 1990 से शुरू हुआ था और साथ ही सवर्णों की राजनीति और कमजोर होगी तो दूसरी ओर यह कहा जा रहा है कि जान बूझकर आंकड़ों में गड़बड़ी की गई है ताकि सवर्ण आबादी कम दिखाई जाए। यहां तक कि कई पिछड़ी जातियों के नेता मान रहे हैं कि उनकी जाति की संख्या कम बताई गई है। मिसाल के तौर पर यादव के बाद जो दूसरी सबसे बड़ी पिछड़ी जाति है वह कोईरी है, जिसके नेता आठ फीसदी आबादी का दावा करते थे। पर गिनती में उनका आंकड़ा सवा चार फीसदी का आया है। उनको लग रहा है कि जान बूझकर ऐसा किया गया है क्योंकि नीतीश को काउंटर करने के लिए भाजपा कोईरी राजनीति कर रही है और इसलिए उसने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।

इसके अलावा भूमिहार और ब्राह्मणों का भी दावा है कि उनकी गिनती नहीं की गई है। भूमिहार और ब्राह्मण दोनों अपनी आबादी पांच-पांच फीसदी मानते थे। लेकिन भूमिहार की आबादी 2.86 और ब्राह्मण की 3.65 बताई गई है। इनके नेताओं का कहना है कि बिहार के विभाजन के बाद पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की बड़ी आबादी झारखंड में चली गई इसलिए बिहार में सवर्ण आबादी का प्रतिशत बढ़ना चाहिए था लेकिन जाति गणना में उसे और कम कर दिया गया। इसमें गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कई लोगों ने यह आंकड़ा दिया है कि इसमें प्रवासी बिहारियों की आबादी 53 लाख बताई गई है, जबकि 2011 की जनगणना के हिसाब से 2010 में ही 93 लाख बिहारी बाहर रहते थे। कई लोग अब सामने आकर कह रहे हैं कि उनके यहां गिनती करने वाला कोई नहीं आया और ऑफिस में बैठ कर आंकड़े भरे गए हैं।

NI Political Desk

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