देश के कई राज्यों की तरह पंजाब में भी विपक्षी पार्टी की सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद चल रहा है। इस मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को लेकर कुछ तीखी टिप्पणियां कीं लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह रही कि अदालत ने सरकार को भी नसीहत दी और कहा कि वह मॉनसून सत्र को शीतकालीन सत्र तक न खींचे। असल में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने सर्वोच्च अदालत को बताया था कि पंजाब में सत्र समाप्त होने के बाद स्पीकर उसका सत्रावसान ही नहीं कर रहे हैं। सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होता है और उसका सत्रावसान नहीं होता है। ऐसी स्थिति का मतलब होता है कि सरकार जब चाके तब फिर सत्र बुला सकती है। उसे राज्यपाल की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।
अगर किसी सत्र का सत्रावसान हो जाएगा तो फिर नया सत्र बुलाने के लिए कैबिनेट को मंजूरी देनी होती है और फिर प्रस्ताव राज्यपाल को भेजा जाता है। लेकिन अगर सत्रावसान नहीं हुआ है तो इसका मतलब है कि बिना राज्यपाल की मंजूरी के सत्र बुलाया जा सकता है। दिल्ली और पंजाब दोनों जगह आम आदमी पार्टी यह होशियारी करती है। इसका इस्तेमाल करके सरकार कभी भी विशेष सत्र बुला लेती है और सदन में मुख्यमंत्री और दूसरे नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्र सरकार पर जो मन में आता है बोलते हैं। तू डाल डाल, मैं पात पात के इस खेल में राज्यपाल ने एक विशेष सत्र को ही अवैध बता दिया और उसमें पेश करने के लिए भेजे गए धन विधेयक को रोक दिया। विधानसभा से पास कई विधेयक भी राज्यपाल के पास लम्बित थे। सो, राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।