भारतीय जनता पार्टी की बिहार और उत्तर प्रदेश सहित देश भर की छोटी बड़ी सहयोगी पार्टियों की परेशानी बढ़ रही है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है उनकी चिंता बढ़ती जा रही है। बिहार में उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और पशुपति पारस कई महीनों से भाजपा के शीर्ष नेताओं के चक्कर लगा रहे थे। वे भाजपा नेतृत्व पर सीट बंटवारे का दबाव बना रहे थे। लेकिन भाजपा ने इसे टाले रखा और अचानक जनता दल यू की एनडीए में वापसी हो गई। BJP allies NDA
नीतीश कुमार के एनडीए में लौटने के बाद अब चार छोटी पार्टियों के लिए बहुत कम गुंजाइश बची है। सबकी सीटें कम होने का खतरा मंडरा रहा है। तभी आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नाय़डू की टीडीपी और पवन कल्याण की जनसेना ने विधानसभा चुनाव के लिए 118 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश में भी सहयोगी परेशान हैं। वहां ओमप्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद आदि सीट बंटवारा फाइनल करने के लिए घूम रहे थे लेकिन भाजपा ने उनको लटकाए रखा और अचानक राष्ट्रीय लोकदल को एनडीए में शामिल कराने का फैसला हो गया। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के साथ ही तय हो गया कि जयंत चौधरी की पार्टी भाजपा के साथ जा रही है। अगर रालोद की एनडीए में वापसी होती है तो भाजपा की सहयोगी चार पार्टियां हो जाएंगी।
इन पार्टियों को अब इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी से तो भाजपा का तालमेल नहीं हो जाएगा? अगर ऐसा चमत्कार होता है तो सभी छोटी पार्टियां देखती रह जाएंगी। उनके हिस्से की सीटें बसपा को चली जाएंगी। हालांकि यह दूर की कौड़ी है लेकिन भाजपा की छोटी सहयोगी पार्टियों को इसकी चिंता सता रही है।
इसी तरह की चिंता महाराष्ट्र की दोनों सहयोगी पार्टियों को है। पहले भाजपा की मदद से एकनाथ शिंदे ने शिव सेना को तोड़ा और भाजपा ने शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया तो ऐसा लग रहा था कि अब भाजपा और शिंदे ही गठबंधन करके लड़ेंगे। यह भी कहा जा रहा था कि शिव सेना को जितनी सीटें दी गई थीं उनमें से कुछ छोड़ कर बाकी सीटें शिंदे गुट को मिलेंगी। लेकिन अचानक एक दिन शरद पवार की पार्टी टूट गई और अजित पवार भी सरकार में शामिल हो गए।
इसके बाद कहा जाने लगा कि शिव सेना की सीटें शिंदे और अजित पवार के बीच बंटेंगी। लेकिन उस बारे में भी अंतिम फैसला नहीं हुआ है। इससे एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों की पार्टियों में बेचैनी है। उनको लग रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि उद्धव ठाकरे की ही एनडीए में वापसी हो जाए। फिर इन दोनों की पूछ खत्म हो जाएगी। भाजपा ने जिस तरह से 370 सीट और एनडीए के लिए चार सौ सीट का लक्ष्य रखा है और एक एक करके पुरानी सहयोगी पार्टियों को साथ ला रही है उससे लग रहा है कि वह कुछ भी कर सकती है। आंध्र प्रदेश में भी गठबंधन इस वजह से अटका हुआ है।