केंद्र सरकार ने वक्फ कानून बना कर देश की सभी पार्टियों को इसके विरोध के काम में लगा दिया है। देश की सभी भाजपा विरोधी पार्टियां, मुस्लिम संगठन और सेकुलर राजनीति का इकोसिस्टम वक्फ कानून के विरोध में जुट गए हैं। मुस्लिम संगठन हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसका दायरा पश्चिम बंगाल के चार जिलों में फैल गया है और वहां से निकल कर उसकी आग असम तक पहुंच गई है।
देश के दूसरे हिस्सों में वक्फ कानून पर विरोध प्रदर्शन होंगे और जहां भी प्रदर्शन होगा वहां भीड़ के हिंसक होने की आशंका है। खास कर उन राज्यों में जहां गैर भाजपा दलों की सरकार है। झारखंड संभावित संकट वाला एक राज्य है, जहां एक मंत्री ने शरिया कानून को संविधान से ऊपर मानने का बयान देकर पहले से विवाद खड़ा किया हुआ है।
सड़कों पर विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक बयानबाजी के अलावा एक होड़ मची है वक्फ कानून को कोर्ट में चुनौती देने और विधानसभा में प्रस्ताव पास करने की। भाजपा विरोधी पार्टियां जहां भी सरकार में हैं वहां वे वक्फ कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास करा रही हैं। इसके साथ ही देश भर की भाजपा विरोधी पार्टियां वक्फ कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी रहे हैं। पार्टियों ने या तो सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून के खिलाफ याचिका दायर कर दी है या दायर करने का ऐलान कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून को लेकर राजनीति और तुष्टिकरण
सवाल है कि जब किसी एक पार्टी ने याचिका दायर कर दी या एक नेता या एक संगठन ने कानून को चुनौती दे दी और सर्वोच्च अदालत उस पर सुनवाई करने को तैयार हो गई तो सभी पार्टियों को एक एक करके इस कानून के खिलाफ याचिका दायर करने और इस मामले में पार्टी बनने की क्या जरुरत है? यह जरुरत कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक है। सभी भाजपा विरोधी पार्टियों को मुस्लिम समुदाय के दिखाना है कि वे इस कानून का विरोध कर रहे हैं। उनको लग रहा है कि अगर उन्होंने याचिका नहीं दी और दूसरी पार्टी ने दे दी तो मुस्लिम मतदाताओं के नजर में सेकुलर क्रेडेंशियल यानी धर्मनिरपेक्षता की साख कम होगी। इसी को राजनीतिक शब्दावली में तुष्टिकरण कहते हैं।
बहरहाल, सबसे पहले बिहार की किशनगंज सीट से कांग्रेस के सांसद मोहम्मद जावेद ने वक्फ कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनके पीछे पीछे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया एमआईएम ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की। जमात ए उलमा ए हिंद जैसे आधा दर्जन से ज्यादा मुस्लिम संगठनों ने इसके खिलाफ याचिका दी है। उसके बाद तमिलनाडु में सरकार चला रहे एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची और इसके खिलाफ याचिका दायर की।
फिर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस वक्फ कानून का विरोध करने सुप्रीम कोर्ट पहुंची। लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। यहां तक कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई, जिसका कोई आधार अब देश में नहीं बचा है उसने भी कानून को चुनौती दी है और तमिलनाडु में एक साल पहले पार्टी बना कर राजनीति में उतरे सुपरस्टार विजय की पार्टी टीवीके भी अदालत में पहुंची है। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने भी कानून को चुनौती दी है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले एक दर्जन राजनीतिक दलों ने अपने अपने सांसदों के जरिए इस कानून के खिलाफ याचिका दायर कराई है।
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