वक्फ बिल : संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में अब सिर्फ तीन कामकाजी दिन बचे हैं। सोमवार, एक अप्रैल को ईद की छुट्टी है और संसद चार अप्रैल तक चलनी है। इन तीन कामकाजी दिनों में सरकार को वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन का बिल पेश करना है और उसे पास कराना है। बाकी सभी जरूरी विधायी काम हो चुके हैं। वित्त विधेयक पास होने के साथ ही बजट पास कराने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
इमिग्रेशन बिल जैसे कुछ अन्य बिल भी सरकार पास करा चुकी है। तभी कहा जा रहा था कि बजट सत्र शुक्रवार को समाप्त हो जाएगा क्योंकि सरकार के पास कोई बिजनेस नहीं बचा है। यह भी चर्चा हुई कि शनिवार को भी सत्र चल सकता है और उसके बाद संसद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो जाएगी। कई जानकार नेता कह रहे थे कि सरकार इस सत्र में वक्फ बिल पेश नहीं करेगी और इसलिए सत्र पहले समाप्त करने की चर्चा हो रही थी।
लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया है कि सरकार इसी सत्र में वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन का बिल पेश करेगी। उन्होंने एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में यह बात कही। अब सवाल है कि सरकार इसे सिर्फ पेश करेगी या इसी सत्र में पास भी कराएगी? यह बड़ा सवाल है क्योंकि सरकार ने मुस्लिम समाज की संवेदनशीलता का इतना ख्याल रखा कि रमजान के महीने में बिल पेश नहीं किया।
वक्फ बिल पर सरकार की रणनीति, ईद के बाद होगा पेश?
गौरतलब है कि वक्फ बिल पर विचार के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट पहले ही सौंप दी थी। उस रिपोर्ट को पेश भी किया जा चुका है और उसमें जरूरी संशोधनों के साथ वक्फ बिल तैयार है। परंतु सरकार ने फैसला किया कि इसे ईद के बाद पेश किया जाएगा।
तभी सरकार से जुड़े जानकार सूत्रों का कहना है कि सरकार को बिल पास कराना है। इसी सत्र में वक्फ बिल पास कराना है क्योंकि अगर सिर्फ पेश करके छोड़ना होता तो रमजान के महीने में भी पेश करके उसे लंबित रखा जाता या लोकसभा से पास करके राज्यसभा में छोड़ दिया जाता।
सरकार ईद के बाद इसे पेश कर रही है इसका मतलब है कि पेश करके चर्चा के लिए समय तय किया जाएगा और दोनों सदनों में पास करा लिया जाएगा। दो दिन में यह काम संपन्न होगा। यह भी कहा जा रहा है कि इसी के असर को कम करने के लिए ईद पर मोदी की सौगात बंट रही है। हालांकि दूसरी ओर जानकार नेताओं का एक खेमा ऐसा भी है, जो मान रहा है कि इस विधेयक को थोड़े समय और टाला जा सकता है।
बिहार में भाजपा की दो सहयोगी पार्टियां, जनता दल यू और लोक जनशक्ति पार्टी को लग रहा है कि उनको इसका थोड़ा नुकसान हो सकता है। ध्यान रहे बिहार में मुस्लिम बहुल सीटों पर आमतौर पर भाजपा नहीं लड़ती है। वैसी सीटें इन दोनों पार्टियों को लड़नी है इसलिए वे नहीं चाहते हैं कि मुस्लिम जमात पूरी तरह से खिलाफ होकर इनके उम्मीदवारों को हरवाने के लिए वोट करे। सरकार की एक और सहयोगी रालोद के जयंत चौधरी ने भी मुस्लिमों के प्रति नफरत की राजनीति से अपने को दूर किया है।
इसके अलावा विपक्षी पार्टियों की एकजुटता भी सरकार को चिंता में डाल रही है। सारी बातों के बावजूद दोनों सदनों में अभी भाजपा के पास बहुमत नहीं है। उसे सहयोगियों पर निर्भर रहना है। सहयोगी पाला नहीं बदलेंगे फिर भी सस्पेंस कायम रहेगा।
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