राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने और हिंदी अनिवार्य करने का मुद्दा अब लगता है कि ठंडे बस्ते में चला गया। अब कहीं इस बात की चर्चा नहीं हो रही है और न कहीं विवाद की खबर आ रही है। तमिलनाडु में भी हिंदी का मुद्दा चर्चा में नहीं है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ऐसा लग रहा था कि तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार के बीच हिंदी को लेकर जंग छिड़ी है और यह भी लग रहा था कि हिंदी का मुद्दा ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा होगा। लेकिन अचानक यह मुद्दा ठंडा पड़ गया। तमिलनाडु में इस मुद्दे के ठंडा पड़ने का एक कारण तो यह है कि भाजपा ने अन्ना डीएमके से तालमेल का ऐलान किया है और अन्ना डीएमके को भी हिंदी को लेकर आपत्ति है।
बताया जा रहा है कि अन्ना डीएमके और दूसरी सहयोगी पीएमके ने हिंदी के मुद्दे को पीछे करने का दबाव डाला। लेकिन उसके साथ ही एक घटनाक्रम महाराष्ट्र का हुआ, जिसके बाद भाजपा का पीछे हटना तय हो गया। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कक्षा पांच तक हिंदी अनिवार्य करने का फैसला किया। इस फैसले की घोषणा कर दी गई। लेकिन इसका भारी विरोध शुरू हुआ। विपक्षी पार्टियों ने तो खुल कर विरोध किया लेकिन सरकार में शामिल दोनों घटक दलों, शिव सेना और एनसीपी ने भी इसका विरोध किया। इस विरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। यह तय किया गया है पहली और दूसरी भाषा क्रमशः मराठी और अंग्रेजी होंगे, जब तीसरी भाषा वैकल्पिक होगी। अगर कोई चाहे तो तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को चुन सकता है। जब एक भाजपा शासित राज्य ने हिंदी अनिवार्य करने का फैसला वापस लिया तो भाजपा किसी दूसरे राज्यों में इसे अनिवार्य बनाने का दबाव नहीं डाल सकती है।