कांग्रेस पार्टी के छात्र संगठन एनएसयूआई ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव जीता है। चार सबसे अहम पदों में से दो पद उसको मिले हैं। सात साल बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ का अध्यक्ष कांग्रेस के एनएसयूआई का होगा। पिछले सात साल में कई साल कोरोना की वजह से चुनाव नहीं हुए। लेकिन जब चुनाव हुआ तो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी का दबदबा रहा। अब तो छात्र संघ के साथ साथ शिक्षक संघ पर भी भाजपा और आरएसएस का दबदबा बन गया है। कुछ समय पहले ही दिल्ली यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ के अध्यक्ष पद पर भी भाजपा समर्थित उम्मीदवार की जीत हुई, जबकि पहले लेफ्ट और कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार जीतते थे। ऐसे माहौल में एनएसयूआई का जीतना बहुत अहम है।
ध्यान रहे दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। दो महीने बाद चुनाव हैं और उससे ठीक पहले एनएसयूआई के रौनक खत्री ने अध्यक्ष का चुनाव जीता। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कहा कि यह राहुल गांधी की लोकप्रियता की जीत है। हालांकि यह सिर्फ कहने की बात है क्योंकि राहुल गांधी की लोकप्रियता का इससे कोई लेना देना नहीं है। फिर भी एनएसयूआई ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में अपना वजूद बचाए रखा है और एबीवीपी को टक्कर दे रही है, यह बड़ी बात है। यह बड़ी बात इसलिए भी है कि क्योंकि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में पैर जमाने के बड़े प्रयास किए। आम आदमी पार्टी के छात्र संघ, छात्र युवा संघर्ष समिति ने कई चुनाव लड़े लेकिन कुछ भी हासिल नहीं हुआ और थक हार कर उसने चुनाव लड़ना छोड़ दिया।
सो, एनएसयूआई की जीत आम आदमी पार्टी के लिए ही खतरे की घंटी है। दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी, जहां है वहां से पीछे नहीं जाती है। उसे 36 फीसदी के करीब वोट मिलते हैं उसमें कोई सेंधमारी नहीं हुई है। लेकिन कांग्रेस का वोट लगभग पूरी तरह से आप की ओर शिफ्ट हो गया। अब कांग्रेस उस वोट को वापस हासिल करने के लिए प्रयास कर रही है। कांग्रेस के नए अध्यक्ष देवेंद्र यादव खूब मेहनत कर रहे हैं। कांग्रेस की इस मेहनत से ही भाजपा ने भी उम्मीद पाली है कि अगर कांग्रेस कुछ नुकसान पहुंचा दे तो आम आदमी पार्टी को हराया जा सकता है। आम आदमी पार्टी समझ रही है कि कांग्रेस दबाव की राजनीति कर रही है। लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी में कांग्रेस के छात्र संगठन की जीत से उसको भी हवा के रुख का अंदाजा लगेगा और संभव है कि वह दबाव में आए यानी कांग्रेस के साथ तालमेल के लिए तैयार हो। दिल्ली में तालमेल संभव है क्योंकि दिल्ली में पहले से विपक्ष का पूरा स्पेस भाजपा के पास है। यहां केरल या पंजाब वाली स्थिति नहीं है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां साथ आएंगी तो विपक्ष का पूरा स्पेस भाजपा को मिल जाएगा।