बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का खेल समझना सबके वश की बात नहीं होती है। अभी वे जो राजनीति कर रहे हैं उससे महागठबंधन की दोनों पार्टियां यानी राजद और कांग्रेस में संदेह पैदा हुआ है तो दूसरी ओर भाजपा के अंदर भी कौतुहल है कि आखिर नीतीश क्या करना चाहते हैं। असल में वे पिछले दिनों महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में हिस्सा लेने पहुंचे थे और वहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अरलेकर की मौजूदगी में भाजपा की जम कर तारीफ की। उन्होंने मंच पर मौजूद भाजपा सांसद राधमोहन सिंह की ओर इशारा करके कहा कि भाजपा के लोगों के साथ दोस्ती कभी खत्म नहीं हो सकती है। हालांकि बाद में उनकी पार्टी की ओर से कहा गया कि वे निजी दोस्ती या निज संबंधों की बात कर रहे थे।
लेकिन सवाल है कि जब निजी संबंध की बात कर रहे थे तब वहां मंच से कांग्रेस की आलोचना और भाजपा की तारीफ करने का क्या मतलब था? नीतीश ने कहा कि केंद्र की मनमोहन सिंह की सरकार से वे केंद्रीय विश्वविद्यालय के बारे में कहते रहे पर उसने उनकी बात नहीं सुनी लेकिन 2014 में जो सरकार केंद्र में आई उसने उनकी बात सुन ली। हकीकत यह है कि बिहार में एक साथ दो केंद्रीय विश्वविद्यालय की मंजूरी मनमोहन सिंह की सरकार ने ही दी थी। कपिल सिब्बल मानव संसाधन मंत्री थी और उन्होंने एक केंद्रीय विश्वविद्यालय गया में और दूसरा मोतिहारी में बनाने की मंजूरी दी थी। यह जरूर है कि मोतिहारी वाले केंद्रीय विश्वविद्यालय की संसद से मंजूरी दिसंबर 2014 में हुई। लेकिन सरकार उसे पहले मंजूर कर चूकी थी और फंड जारी किया जा चुका था।
तभी कांग्रेस के नेता हैरान हुए इस मसले पर भाजपा की तारीफ का क्या मतलब है? उलटे नीतीश को तो भाजपा की आलोचना करनी चाहिए थी क्योंकि 2017 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना विश्वविद्यालय के सौ साल पूरे होने के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे थे तब मंच से नीतीश कुमार ने लगभग हाथ जोड़ कर कहा था कि यह देश का सातवां सबसे पुराना विश्वविद्यालय है और इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय की मान्यता मिलनी चाहिए लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी बात अनसुनी कर दी।
बहरहाल, एक तरफ वे भाजपा से दोस्ती दिखा रहे हैं, तारीफ कर रहे हैं तो दूसरी ओर राजद के नेता तेजस्वी यादव को बिहार की राजनीति का भविष्य बता रहे हैं। वे उनकी भी तारीफ करते हैं और हर जगह उनको आगे करके कहते हैं कि अब जो हैं ये ही हैं। वे बार बार लालू प्रसाद से मिलने उनके आवास पर भी चले जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि नीतीश कुमार राजद और कांग्रेस दोनों पर दबाव बना रहे हैं कि वे उनके हिसाब से राजनीति करें और इसके साथ साथ राजद और भाजपा दोनों के वोट बैंक को भी मैसेज दे रहे हैं। असल में उनका अपना निजी वोट काफी कम हो गया है। इसलिए उनको लग रहा है कि आगे की उम्मीद में भाजपा समर्थक और राजद समर्थक उनके उम्मीदवारों को वोट करेंगे तभी उनकी नाव पार लगेगी।