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बहुत कुछ पहली बार हो रहा है

ByNI Political,
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नरेंद्र मोदी भले तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं लेकिन उनके तीसरे कार्यकाल में बहुत कुछ पहली बार हो रहा है। वैसे उनकी पार्टी के अनेक समर्थक ज्योतिष की गणना भी करा रहे हैं और कह रहे हैं कि इस बार सरकार का संयोग ठीक नहीं लग रहा है क्योंकि सरकार बनते ही ट्रेन दुर्घटना, नीट का पेपर लीक, भारी बारिश, एयरपोर्ट की छत गिरने जैसी घटनाएं हो रही हैं। लेकिन यह सब कुछ तो होता रहता है। असली बात यह है कि संसदीय राजनीति और संवैधानिक व्यवस्था में बहुत सी चीजें पहली बार हो रही हैं, जिनको किसी लिहाज से अच्छा नहीं माना जा सकता है।

यह पहली बार हुआ है कि किसी राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के ऊपर मानहानि का मुकदमा किया है। यह पश्चिम बंगाल में हुआ है। वैसे तो कई राज्यों में सरकार और राज्यपाल के बीच तनातनी है लेकिन यह नहीं हुआ कि राज्यपाल के ऊपर एक नहीं, बल्कि दो महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगे, पुलिस मुकदमा दर्ज करे, राज्यपाल पुलिस के राजभवन में प्रवेश पर पाबंदी लगाएं और अंत में मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि का मुकदमा हो। यह पहली बार हो रहा है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच यह स्थिति आ गई है। हैरानी की बात है कि भारत की इतनी लंबी संसदीय परंपरा और व्यवस्था में ऐसे विवाद को सुलझाने का कोई तंत्र नहीं है। क्या राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को इस मामले में दखल देकर इसे नहीं सुलझाना चाहिए?

पश्चिम बंगाल में ही एक नया विवाद चल रहा है। वहां के दो विधायकों की शपथ नहीं हो पा रही है। राज्यपाल चाह रहे हैं कि दोनों विधायक राजभवन में आकर शपथ लें तो दूसरी ओर विधायकों ने इससे इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि वे स्पीकर के चैम्बर में ही शपथ लेंगे। यह विवाद भी इतना बढ़ गया है कि पश्चिम बंगाल के स्पीकर को फोन करके देश के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से इस मामले में दखल देने की अपील करनी पड़ी। ध्यान रहे उप राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं। इस नाते स्पीकर ने उनसे अपील की है। यह भी पहली बार ही हुआ है।

यह भी पहली बार हुआ कि राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष सदन के वेल में पहुंचे। कांग्रेस अध्यक्ष और नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शुक्रवार को राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान सभापति के आसन के सामने पहुंच गए थे। सभापति ने इसे संसदीय परंपरा पर एक दाग बताया तो दूसरी ओर खड़गे ने सदन से बाहर आकर कहा कि सभापति को नियम के मुताबिक उनसे मुखातिब होना चाहिए था लेकिन वे जान बूझकर उनकी अनदेखी कर रहे थे। ऐसे में उनके सामने इसके सिवा कोई रास्ता नहीं था कि वे वेल में जाएं या फिर जोर से चीखें-चिल्लाएं। खड़गे ने यह भी कहा कि सभापति उनको अपमानित कर रहे थे। सोचें, नई लोकसभा और संसद का पहला सत्र था, उसी में इस तरह की घटना हो रही है तो आगे क्या होगा!

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