भारत के सामने बहुत सारे खतरे हैं। सामाजिक विभाजन बढ़ रहा है, आर्थिक असमानता बढ़ रही है, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत खराब स्थित है, पर्यावरण का बड़ा संकट मंडराता दिख रहा है लेकिन तमाम खतरों में Population कम होना कोई खतरा नहीं है। भारत के सामने कम से कम अगले सौ साल तक जनसंख्या घटने का खतरा नहीं है। दक्षिण कोरिया में जरूर संकट आया हुआ है क्योंकि वहां युवा शादियां नहीं कर रहे हैं और शादी कर रहे हैं तो बच्चे पैदा नहीं कर रहे हैं।
तभी यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि धरती पर सबसे पहले किसी देश का अस्तित्व मिटेगा तो वह दक्षिण कोरिया होगा। दक्षिण कोरिया की कुल आबादी पांच करोड़ से थाड़ी ज्यादा है।
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सोचें, कहां पांच करोड़ और कहां 142 करोड़! इसमें संदेह नहीं है कि भारत में Population बढ़ने की दर में कमी आई है और यह 2.1 फीसदी के रिप्लेसमेंट रेट के नजदीक पहुंच गई है। लेकिन अभी कम से कम 38 साल तक भारत की आबादी में गिरावट आनी नहीं शुरू होगी। भारत की आबादी 2062 में स्थिर होगी, जब वह 170 करोड़ पर होगी। उसके बाद इसमें गिरावट आनी शुरू होगी। इसलिए संघ प्रमुख मोहन भागवत के आबादी घटने का जो खतरा दिखाया है उसकी संभावना तत्काल नहीं दिख रही है।
लेकिन उनका इशारा जिस खतरे की ओर था वह हिंदू आबादी को लेकर था। देश के हिंदुवादी नेता भी बार बार कहते रहे हैं कि मुस्लिम आबादी बढ़ रही है और हिंदू आबादी कम हो रही है इसलिए हिंदुओं को आबादी बढ़ानी चाहिए। उनका कहना है कि इसी अनुपात में हिंदू आबादी बढ़ी है तो एक समय के बाद हिंदू अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। इस खतरे की पड़ताल करन की जरुरत है।