बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के पास अब बहुत वोट नहीं बचा है। हालांकि पिछले कुछ समय से देश की राजनीति में जिस तरह से दलित चेतना का उभार हुआ है और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के नाम पर वोट मांगने का चलन बढ़ा है उसे देखते हुए मायावती की वापसी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। आज देश की सारी पार्टियां वही राजनीति कर रही हैं, जो एक समय कांशीराम और मायावती ने शुरू की थी। भाजपा से लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से लेकर राष्ट्रीय जनता दल जैसी यादव वोट आधार वाली प्रादेशिक पार्टियां भी दलित राजनीति की चैंपियन बन रही हैं। तभी मायावती अपने वोट को लेकर ज्यादा आशंकित हो गई हैं।
हालांकि उनकी अपनी राजनीति और चुनावों के समय निष्क्रियता से उनको बड़ा नुकसान हुआ है और उनका वोट टूट कर भाजपा व सपा दोनों की ओर गया है। अब उन्होंने इसको और टूटने से बचाने की कोशिश शुरू की है। सो, पहला निशाना समाजवादी पार्टी है। पता नहीं आगे वे भाजपा को लेकर भी ऐसा ही अभियान चलाएंगी या नहीं लेकिन अभी सपा को लेकर उन्होंने अपने समर्थकों में यह धारणा बनवानी शुरू की है कि सपा कभी भी दलितों की हितैषी नहीं हो सकती है। इसके लिए पुराने जमाने की बातें याद दिलाई जा रही हैं और साथ साथ जमीनी स्तर के संघर्षों के बारे में बताया जा रहा है। ध्यान रहे एक समय गांव गांव में सबसे ज्यादा झगड़े यादव और दलित समाज के रहे हैं। यह एक सामाजिक सचाई है, जिसका प्रचार बसपा की ओर से किया जा रहा है। तभी माना जा रहा है कि दलित और सवर्ण वोट के लिए सपा को कांग्रेस पर निर्भर रहना होगा।