महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने अपनी इज्जत और पार्टी दोनों को काफी हद तक बचा लिया है। लोकसभा चुनाव में उनका स्ट्राइक रेट 50 फीसदी के करीब रहा है। उनकी पार्टी 14 सीटों पर लड़ी थी और उसे सात सीटें मिलीं। लेकिन अजित पवार की असली एनसीपी चार सीटों पर लड़ी और एक सीट जीत पाई। विधानसभा चुनाव से पहले आए इस नतीजे से यह साबित हुआ है कि चुनाव आयोग और स्पीकर ने भले उनको असली एनसीपी मान लिया हो लेकिन महाराष्ट्र की जनता असली एनसीपी अब भी शरद पवार की पार्टी को ही मानती है। ध्यान रहे पवार की पार्टी 10 सीटों पर लड़ी थी और आठ पर जीती। इस नतीजे के अलावा अजित पवार के सामने दो और संकट आ गए हैं।
पहला तो यह है कि आरएसएस में इस बात का विरोध हो रहा है कि भाजपा ने क्यों उनकी पार्टी के साथ तालमेल किया। संघ के मुखपत्र ‘द ऑर्गेनाइजर’ में लिखे लेख में रतन शारदा ने इस पर सवाल उठाया था। हालांकि पवार की पार्टी ने इस आलोचना को खारिज किया लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा भी आशंकित है। दूसरा संकट यह हुआ कि अजित पवार ने बारामती से लोकसभा चुनाव हारने के बाद अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को राज्यसभा भेजने का फैसला किया। इस पर पार्टी ने एकजुटता तो दिखाई लेकिन सबको पता है कि पार्टी के ओबीसी नेता छगन भुजबल राज्यसभा जाना चाहते थे। उन्होंने भी फैसले का समर्थन किया है लेकिन जानकार सूत्रों का कहना है कि भुजबल सहित कई नेता नाराज हैं।