राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्यों के विधेयकों पर एक निश्चित समय सीमा में फैसला करने का आदेश देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर चौतरफा बहस चल रही है। सरकार ने आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा है लेकिन उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भाजपा के कई सांसदों ने इस पर सवाल उठाया है। असल में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तमिलनाडु के राज्यपाल के खिलाफ दायर राज्य सरकार की एक याचिका पर दिया था, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल 10 विधेयकों को तीन साल से लंबित रखे हुए हैं। इस पर ही अदालत ने कहा है कि राज्यपाल को तीन महीने में विधेयकों पर फैसला करना होगा।
इस फैसले की आलोचना में भाजपा के इकोसिस्टम की ओर से कहा गया कि अदालतों में जज फैसला रिजर्व कर लेते हैं और महीनों, सालों तक फैसला रिजर्व रहता है। इस बहस के बीच खबर आई कि झारखंड हाई कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के बाद जज ने फैसला सुरक्षित रख लिया और तीन साल से वह फैसला सुरक्षित है। यहां भी तीन साल का मामला आया। झारखंड के तीन वकीलों ने यह मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया कि एक फैसला तीन साल से रिजर्व है। यह मामला आजीवन कारावास की सजा पाए चार कैदियों का है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल तक फैसला रिजर्व रखने को नागरिकों के जीवन के अधिकार और उनके मौलिक अधिकार का हनन बताया है और फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने मामला अपने पास मंगा लिया है। इतना ही झारखंड हाई कोर्ट में जितने भी फैसले दो महीने से ज्यादा समय से रिजर्व हैं उनकी भी पूरी सूची सुप्रीम कोर्ट ने मांगी है।