कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कार्य समिति की बैठक में कहा कि प्रदेश के नेता कब तक केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर रहेंगे। उन्होंने यह बात कहते हुए क्या बिल्कुल नहीं सोचा कि झारखंड में किस वजह से गतिरोध है? झारखंड में कांग्रेस की वजह से हेमंत सोरेन को अकेले मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी। यह कहा गया कि मंत्रिमंडल का गठन बहुमत साबित करने के बाद होगा। सोचें, गठबंधन ने 56 सीटें जीती हैं, जो बहुमत से 15 ज्यादा है। किसी भी गठबंधन को इससे पहले इतना बड़ा बहुमत नहीं मिला है। फिर भी बहुमत साबित करने के बाद मंत्रिमंडल बनाने की बात हुई तो उसका कारण कांग्रेस है। कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि किसको मंत्री बनाना है। कहने की जरुरत नहीं है कि क्यों तय नहीं कर पा रही है। दिल्ली में बैठे कांग्रेस के आधा दर्जन नेताओं ने अलग अलग लोगों को मंत्री बनाने का वादा किया है और सारे वादे विशुद्ध व्यवसायिक हैं।
जून में जब चम्पई सोरेन को हटा कर हेमंत सोरेन फिर से मुख्यमंत्री बने थे तब कांग्रेस ने भी कैबिनेट में फेरबदल की थी। कांग्रेस के चार मंत्रियों में सिर्फ एक बन्ना गुप्ता हारे हैं। इरफान अंसारी, दीपिका पांडेय सिंह और रामेश्वर उरांव जीते हैं। लेकिन कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है उनको रिपीट करें या नए मंत्री बनाएं। इसका कारण यह है कि कांग्रेस के एक बहुत बड़े नेता ने बेरमो से चुनाव जीते कुमार जयमंगल उर्फ अनूप सिंह को मंत्री बनाने का वादा कर दिया है। बाबूलाल मरांडी की पार्टी से कांग्रेस में शामिल हुए प्रदीप यादव को भी किसी ने वादा किया है। इरफान अंसारी सब कुछ करने में सक्षम हैं तो उनका जोर है लेकिन कुछ लोग जेल में बंद आलमगीर आलम की पत्नी को बनाने की बात कर रहे हैं। रामेश्वर उरांव सबसे वरिष्ठ हैं लेकिन उम्र के हवाले उनका विरोधी खेमा दक्षिण छोटानागपुर से कोई दूसरा आदिवासी मंत्री बनाने में लगा है। उनकी ओर से राजेश कच्छप, भूषण बारा या बिक्सेल कोंगाडी के नाम चलाए जा रहे हैं। सो, कुल मिला कर कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं ने खास कर संगठन महासचिव और झारखंड के प्रभारी महासचिव ने सारा मामला उलझा रखा है।