बिहार में सी वोटर ने एक सर्वेक्षण किया है। चुनाव की घोषणा से छह महीने पहले हुए इस ओपिनियन पोल के हिसाब से बिहार में सबसे ज्यादा 41 फीसदी लोग राजद के तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। नीतीश कुमार की लोकप्रियता में बड़ी कमी आई है और सिर्फ 18 फीसदी लोगों की पसंद वे हैं। उसके बाद सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 15 फीसदी लोगों ने प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया है। भाजपा के सम्राट चौधरी को आठ फीसदी और लोजपा के चिराग पासवान को चार फीसदी लोगों ने पसंद किया है। इस सर्वे में दूसरी अहम बात यह है कि बिहार के 50 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे एनडीए सरकार से नाखुश हैं और इसे बदलना चाहते हैं।
ओपिनियन पोल्स के बारे में एक आम धारणा रही है कि इनमें कभी भी भाजपा या एनडीए को नहीं हराया जाता है। दूसरी धारणा यह है कि पद पर बैठा मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री हमेशा सबसे लोकप्रिय होता है, चाहे वह कोई भी हो। बिहार का सी वोटर का सर्वे दोनों का अपवाद है। इसमें संदेह नहीं है कि नीतीश कुमार के कमजोर होने पर नेतृत्व के नाते पहली पसंद तेजस्वी यादव होंगे क्योंकि पिछले 11 साल में उनका नेतृत्व बिहार में स्थापित हुआ है। वे लालू प्रसाद और नीतीश की विरासत, सामाजिक समीकरण और वोट का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके मुकाबले भाजपा ने अपना कोई नेता अभी तक स्थापित नहीं किया है। तेजस्वी पिछले 10 साल में साढ़े तीन साल उप मुख्यमंत्री रहे और करीब सात साल नेता प्रतिपक्ष रहे। उनके अलावा दूसरा कोई नेता इतने लंबे समय तक नेतृत्व की पोजिशन में नहीं रहा है।
इस नाते कह सकते हैं कि तेजस्वी यादव स्वाभाविक नेता हैं। फिर भी नीतीश कुमार को सिर्फ 18 फीसदी लोगों की पसंद बताना और एनडीए सरकार से 50 फीसदी लोगों की नाराजगी का सर्वे आना मामूली बात नहीं है। तभी यह सवाल उठ रहा है कि यह सर्वे प्रायोजित तो नहीं है? इससे नीतीश कुमार को सबसे बड़ा झटका लगा है और दूसरी ओर तेजस्वी व राजद में यह धारणा बनी है कि वे जीत रहे हैं। ऐसे में अगर ऐन चुनाव के समय भाजपा ने जदयू को 50-60 सीटों का प्रस्ताव दिया और वह राजी नहीं हुई और अलग होने की सोचे तो दूसरी ओर भी उसको जगह नहीं मिले या मिले तो सीटें कम मिलें। इस सर्वे का तात्कालिक लाभ भाजपा को ही होता दिख रहा है।