अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस एक साथ मिल कर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इसके कई संकेत मिल रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष पद से अधीर रंजन चौधरी को हटा दिया है। कांग्रेस नेता ममता बनर्जी, उनकी सरकार और उनकी पार्टी के प्रति सद्भाव दिखा रहे हैं। ममता के मंत्री ब्रत्या बसु के जादवपुर यूनिवर्सिटी में छात्रों के बीच गाड़ी चलाने के विवाद पर भी कांग्रेस चुप रही, जबकि कम्युनिस्ट पार्टियों ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। अब संसद में भी दोनों पार्टियों की खूब दोस्ती दिख रही है। दोनों एक दूसरे का एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने तृणमूल कांग्रेस की ओर से उठाए गए एजेंडे को आगे किया और तृणमूल के सांसदों ने उनका साथ दिया।
सोचें, पिछले सत्र में क्या हो रहा था? कांग्रेस पार्टी अडानी समूह का मुद्दा उठा रही थी। गौतम अडानी और उनकी कंपनी के कई अधिकारियों पर अमेरिका में हुए मुकदमे को लेकर कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाया था। लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इसमें शामिल होने से साफ मना कर दिया। सबसे पहले तृणमूल ने कहा कि यह मुद्दा उठाने की जरुरत नहीं है। उसके बाद समाजवादी पार्टी और उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने इस मुद्दे से पल्ला झाडा। तब कांग्रेस इस मसले पर अकेली पड़ गई थी। उस समय तृणमूल कांग्रेस ने संसदीय कार्यवाही शुरू होने से पहले राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के चैम्बर में होने वाली बैठकों में जाना भी बंद कर दिया था। लेकिन अब दोनों इतने नजदीक आ गए हैं कि एक दूसरे के एजेंडे को सपोर्ट कर रहे हैं। मतदाता सूची का मामला कांग्रेस ने महाराष्ट्र चुनाव के समय उठाया था लेकिन अगले साल पश्चिम बंगाल में चुनाव हैं और उससे पहले तृणमूल कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया है। संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण के पहले दिन राहुल गांधी ने यह मुद्दा उठाया और कहा कि देश भर से इसकी शिकायत मिल रही है। तृणमूल ने इस मुद्दे पर राहुल का समर्थन किया। आने वाले दिनों में यह दोस्ती और मजबूत होती दिखेगी।