कार्मिक और लोक शिकायत विभाग की संसदीय समिति ने भारत की सबसे प्रतिष्ठित सेवा के लिए नियुक्ति की प्रक्रिया में गंभीर कमी की ओर इशारा किया है और बदलाव की सिफारिश की है। संसद की स्थायी समिति ने अपनी 131वीं रिपोर्ट में कहा है कि संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी द्वारा अखिल भारतीय सेवाओं के लिए नियुक्ति की जो परीक्षा होती है उसमें हर साल चयनित होने वाले 70 फीसदी अभ्यर्थी या तो इंजीनियर होते हैं या मेडिकल बैकग्राउंड के होते हैं। इसमें तकनीकी या कानूनी रूप से कोई गड़बड़ी नहीं है। लेकिन संसदीय समिति का मानना है कि इससे देश को बड़ा नुकसान हो रहा है।
असल में भारत को अच्छे इंजीनियर और डॉक्टर दोनों की जरूरत है। लेकिन हर साल इंजीनियरिंग और मेडिकल पास करने वाले युवाओं का एक बड़ा हिस्सा यूपीएससी की परीक्षा देकर अखिल भारतीय प्रशासनिक, पुलिस या विदेश सेवा आदि के लिए चुन लिया जाता है। इसका एक दूसरा नुकसान गैर तकनीकी पृष्ठभूमि वाले युवाओं को होता है। परीक्षा के फॉर्मेट की वजह से उनके लिए लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं रह जाता है। वे ज्यादा संख्या में परीक्षा में हिस्सा लेते हैं लेकिन चुने जाने का प्रतिशत बहुत कम होता है। उनकी संख्या 28 से 30 फीसदी के बीच रहती है। सबसे ज्यादा 65 फीसदी के करीब इंजीनियरिंग के छात्र होते हैं। ध्यान रहे अच्छे संस्थानों से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले नौजवान बड़ी संख्या में विदेश चले जाते हैं। उसके बाद एक बड़ा हिस्सा प्रशासनिक सेवाओं में चला जाता है। सरकार को निश्चित रूप से समिति की सिफारिशों पर विचार करना चाहिए और जरूरी बदलाव की पहल करनी चाहिए।