जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर सस्पेंस जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत साफ शब्दों में 30 सितंबर तक चुनाव कराने को कहा है। लेकिन क्या केंद्र सरकार और चुनाव आयोग इसके लिए तैयार होंगे या वे सुप्रीम कोर्ट से और समय देने की मांग करेंगे? नई सरकार बनने के बाद इसका पता चलेगा। लेकिन अभी लोकसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर के लोगों ने जैसा उत्साह दिखाया है वह कमाल का है। जम्मू कश्मीर की दो सीटों पर लोकसभा के चुनावों में लोगों ने रिकॉर्ड तोड़ मतदान किया है। राजधानी श्रीनगर की सीट पर 38.5 फीसदी मतदान हुआ, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 13 फीसदी वोट पड़े थे। यानी तीन गुना ज्यादा मतदान हुआ। इसी तरह बारामूला सीट पर जहां से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला चुनाव लड़ रहे हैं वहां 59.1 फीसदी मतदान हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में बारामूला सीट पर सिर्फ 34.6 फीसदी लोगों ने वोट डाले थे।
जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र के प्रति जैसा उत्साह दिखा है और लोग जिस अंदाज में वोट डालने निकले हैं उससे राज्य के हालात को लेकर बताई जा रही सारी धारणा गलत साबित हुई। यह पता चल गया है कि लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहते हैं। दूसरे यह भी पता चल गया है कि अब सुरक्षा की बड़ी चिंता नहीं है। लोग आतंकवादियों को जवाब देने के मूड में हैं। तभी यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि अब राज्य में विधानसभा चुनाव हो सकता है। लेकिन सवाल है क्या लोगों की भावना और सुरक्षा की चिंता में ही जम्मू कश्मीर में इतने दिनों से चुनाव नहीं हो रहा है या कुछ और कारण है? ध्यान रहे जम्मू कश्मीर में आखिरी बार 2014 में चुनाव हुआ था और नवंबर 2018 से राज्य में विधानसभा नहीं है। अगस्त 2019 से जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है। उसके बाद से परिसीमन के जरिए विधानसभा क्षेत्रों की भौगोलिक सीमा में बदलाव, सीटों की संख्या बढ़ाने और आरक्षण से जुड़े कई फैसले हुए हैं। मतदाता सूची का पुनरीक्षण हो चुका है। फिर भी चुनाव नहीं हो रहा है तो इसका एक कारण यह है कि भाजपा को अभी तक यह भरोसा नहीं हो रहा है कि चुनाव हुए तो उसकी सरकार बनेगी। जब यह भरोसा बन जाएगा तब वहां चुनाव हो जाएगा।