नौ फरवरी को जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया उस दिन ऐसा लग रहा था कि अब भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के तालमेल का ऐलान होने ही वाला है। रालोद नेता और राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी ने कब भी दिया था कि अब वे किस मुंह से भाजपा के प्रस्ताव को इनकार करेंगे। उनको लोकसभा की दो सीटें और एक राज्यसभा दिए जाने की चर्चा चल रही थी। कहा जा रहा था कि उनको तीन लोकसभा सीट भी मिल सकती है। अंदरखाने दोनों पार्टियों के बीच सटों का तालमेल फाइनल हो गया है। लेकिन करीब दो हफ्ते बाद भी आधिकारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं हुई है। जयंत चौधरी ने सामने आकर नहीं कहा है कि वे भाजपा के साथ जा रहे हैं और भाजपा ने उनकी पार्टी के लिए अमुक अमुक सीटें छोड़ी है। भाजपा का इको सिस्टम भी इस मामले में खामोश है।
इसी तरह पंजाब में अकाली दल के साथ भाजपा का गठबंधन लगभग तय हो गया था। भाजपा द्वारा बड़े उत्साह और उम्मीद के साथ कांग्रेस छुड़ा कर पार्टी में लाए गए पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह इस प्रयास में लगे थे कि तालमेल हो जाए। वे खुल कर कह भी रहे हैं कि वे भाजपा और अकाली दल के तालमेल के पक्ष में हैं और इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल भी रहे हैं। लेकिन तालमेल की घोषणा नहीं हो रही है। सोचें, सब फाइनल होने के बाद भी रालोद और अकाली दल से तालमेल का ऐलान नहीं हो रहा है तो इसका कारण किसान आंदोलन है। जब चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान किया गया तभी किसानों का आंदोलन शुरू हुआ। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी गारंटी देने के मसले पर किसानों ने प्रदर्शन शुरू किया। अब अकाली दल और रालोद दोनों को भाजपा से तालमेल तो करना है लेकिन किसान आंदोलन की मजबूरी में दोनों इसकी घोषणा टाल रहे हैं। वे चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी आंदोलन खत्म हो, कोई रास्ता निकले तो वे भाजपा के साथ जाने का ऐलान करें।