बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरी तरह से अलग थलग पड़ते दिख रहे हैं। विपक्षी गठबंधन की पहली बैठक में पूरा फोकस उनके ऊपर था तो चौथी बैठक आते आते फोकस शिफ्ट हो चुका है। अब उनकी पूछ बहुत घट गई है। जबसे उनके मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठे हैं तब से उनकी चर्चा और बंद हो गई है। हालांकि पटना में उनकी पार्टी के नेताओं ने ‘इंडिया’ की बैठक से पहले होर्डिंग्स लगाए थे, जिनमें नीतीश कुमार को संयोजक बनाने या बड़ी भूमिका देने की मांग की गई थी। लेकिन सबको पता है कि अब संभव नहीं है कि विपक्षी गठबंधन में नीतीश को कोई बड़ी भूमिका मिली। नीतीश को भी इसका अंदाजा है तभी नई दिल्ली की बैठक में उन्होंने किसी न किसी बहाने नाराजगी दिखाई।
नीतीश ने बैठक में हिंदी में भाषण दिया। पिछली बार भी वे हिंदी में ही बोले थे, जिसका अंग्रेजी अनुवाद राजद के सांसद मनोज झा ने किया था। इस बार फिर नीतीश के भाषण के बाद डीएमके के टीआर बालू ने मनोज झा को अनुवाद के लिए कहा तो नीतीश भड़क गए। उन्होंने हिंदी के महत्व पर एक अच्छा खासा लेक्चर दे दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी राष्ट्र भाषा है और सबको इसे समझना चाहिए। नीतीश ने यह भी कहा कि अंग्रेज हमारे ऊपर अंग्रेजी थोप गए उससे मुक्त होना चाहिए। नीतीश की नाराजगी से सब हैरान थे। इसी तरह नीतीश ने भारत पर जोर दिया और कहा कि देश का नाम भारत होना चाहिए। उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ध्यान रहे भाजपा पिछले कुछ दिनों से हर जगह भारत का इस्तेमाल कर रही है। तभी नीतीश के हिंदी और भारत प्रेम के बाद कई विपक्षी पार्टियों के नेता परेशान हैं कि कहीं वे फिर से पुरानी पार्टी की ओर तो नहीं लौट जाएंगे। हालांकि यह भी हो सकता है कि ज्यादा भाव नहीं मिलने से नाराज होकर उन्होंने इस तरह खीज निकाली हो।