पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियां पहले से ज्यादा बिखरा दिख रहा है। कायदे से विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ बनने के बाद बिखराव नहीं होना चाहिए था। लेकिन उलटा हो रहा है। पांच में से दो राज्यों- तेलंगाना और मिजोरम को छोड़ दें तो मुख्य मुकाबले वाले तीन राज्यों में विपक्ष पहले से ज्यादा बिखरा हुआ दिख रहा है। मुकाबला फ्री फॉर ऑल हो गया है। देश भर की पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं, जिनमें से कोई विपक्षी गठबंधन की सदस्य हैं। मध्य प्रदेश में 90 से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस के साथ साथ ‘इंडिया’ के घटक दल भी चुनाव लड़ रहे हैं और उनकी वजह से मुकाबला कांग्रेस बनाम भाजपा का नहीं बन सका। सोचें, विपक्षी गठबंधन बना ही इसलिए है ताकि अगले लोकसभा चुनाव में वन ऑन वन चुनाव बनाया जाए यानी भाजपा के हर उम्मीदवार के सामने विपक्ष का एक उम्मीदवार हो लेकिन कांग्रेस और भाजपा के आमने-सामने वाले चुनावी राज्य में ‘इंडिया’ के घटक खेल बिगाड़ रहे हैं।
मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी से तालमेल की बात नहीं बनी तो उसने उम्मीदवार उतार दिए। इसी तरह जनता दल यू ने भी कई सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। आम आदमी पार्टी ने तो तीनों राज्यों में उम्मीदवार उतारे हैं और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को साथ लेकर रैलियां कर रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में नहीं है लेकिन उसने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से तालमेल करके उम्मीदवार उतारे हैं। छत्तीसगढ़ में दिवंगत अजित जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस भी चुनाव लड़ रही है। दोनों लेफ्ट पार्टियों- सीपीएम और सीपीआई ने अलग उम्मीदवार उतारे हैं। राजस्थान में हनुमान बेनिवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का तालमेल चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ हुआ है। वहां बसपा भी चुनाव लड़ रही है और मायावती प्रचार के लिए जाने वाली हैं। सो, कुल मिला कर चुनावी राज्यों में कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों और कुछ भाजपा विरोधी पार्टियों ने मुकाबले को आमने सामने का नहीं रहने दिया है। नजदीकी मुकाबले वाली सीटों पर इनकी वजह से कांग्रेस का समीकरण बिगड़ सकता है।