कांग्रेस पार्टी के नेता हर बार जो गलती करते हैं वह इस बार भी पांच राज्यों के चुनावों में किया। वह गलती है छोटी पार्टियों को यहां तक कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल पार्टियों से भी चुनाव से पहले बातचीत नहीं करना। अगर ऐसी पार्टियां कुछ सीटें मांग रही हैं तो उनसे बात करके समझाने या कुछ सीटें देने में कांग्रेस को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने इसकी जरूरत नहीं समझी। मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ का वह डायलॉग सबको ध्यान है कि ‘अखिलेश वखिलेश की बात छोड़िए’। हालांकि मध्य प्रदेश में भाजपा को कांग्रेस से आठ फीसदी वोट ज्यादा मिले, जबकि समाजवादी पार्टी को सिर्फ आधा फीसदी वोट मिला। लेकिन यह आधा फीसदी वोट चुनिंदा सीटों पर लड़ने की वजह से मिला है।
अगर कमलनाथ ने अखिलेश से बात करके उनको चार-पांच सीटें दी होतीं और उनसे बात की होती, उनके प्रचार के लिए बुलाते और उनके साथ साझा रैलियां करते तो धारणा बेहतर होती। इसी तरह मध्य प्रदेश में बसपा को साढ़े तीन फीसदी और आप को 0.54 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस इनसे भी बात कर सकती थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के बीच चार फीसदी वोट का अंतर है, जबकि आप, बसपा और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का वोट मिला कर चार फीसदी से ज्यादा होता है। अगर कांग्रेस ने इन नेताओं से बात की होती तो तस्वीर कुछ और हो सकती थी। राजस्थान में तो कांग्रेस सिर्फ दो फीसदी वोट से पीछे रही, जबकि आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय आदिवासी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और सीपीएम को मिला कर करीब 10 फीसदी वोट बनते हैं। भाजपा का विरोध करने वाली इन पार्टियों के साथ कांग्रेस तालमेल बना सकती थी।