दिल्ली में कांग्रेस पार्टी का खाता नहीं खुल सका है। फिर भी कांग्रेस के नेता इस संतोष में होंगे कि उन्होंने आम आदमी पार्टी को हरा दिया। आम आदमी पार्टी की हार ही कांग्रेस की जीत है क्योंकि कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान ही साफ कर दिया था कि उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी आप है। अशोक गहलोत ने यह बात कही थी। राहुल गांधी ने भी भाजपा की ही तरह आप पर हमला किया और यह भी कहा कि दोनों पार्टियां एक जैसी हैं। असल में कांग्रेस पार्टी इस बात से परेशान थी कि आम आदमी पार्टी राज्य दर राज्य चुनाव लड़ कर भाजपा के वोट खराब कर रही थी और उसे हरा रही थी। कांग्रेस को इसका भी बदला लेना था।
पिछले साल के अंत में हुए चुनाव में आप ने कांग्रेस को हरियाणा में हराया था। वह तालमेल करने की बजाय अकेले लड़ गई और उसे 1.80 फीसदी वोट मिला, जबकि कांग्रेस 0.60 फीसदी वोट के अंतर से हारी। उससे पहले गुजरात में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का 13 फीसदी वोट काट लिया, जिसकी वजह से कांग्रेस पहली बार 17 सीटों पर सिमट गई और वह मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं बन सकी। ऐसे ही गोवा में आप ने छह फीसदी से ज्यादा वोट के साथ छह सीटें जीत ली और कांग्रेस की हार का कारण बने।
दिल्ली में इस सबका बदला निकाला। कांग्रेस को दिल्ली में साढ़े छह फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिले हैं और आप व भाजपा के वोट में चार फीसदी के करीब का अंतर रहा है। अगर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से तालमेल किया होता, जिसकी पहल कांग्रेस ने की थी तो वे चुनाव जीत सकते थे। वे अपनी सीट पर जितने अंतर से हारे हैं उससे तीन गुना वोट कांग्रेस के संदीप दीक्षित को मिले। यानी वे खुद भी जीत सकते थे और पार्टी भी जीत सकती थी।