दिल्ली में क्या इतिहास दोहराया जाएगा? नई दिल्ली सीट पर दिसंबर 2013 में कांग्रेस नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चुनाव हरा कर अरविंद केजरीवाल उसी कांग्रेस पार्टी के समर्थन से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। 11 साल के बाद केजरीवाल नई दिल्ली सीट पर ऐसे घिरे हैं कि उनकी पूरी पार्टी का सारा ध्यान किसी तरह से सीट निकालने पर लग गया है। केजरीवाल अब पूरी दिल्ली का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। जिस तरह से उनकी डिप्टी रहे मनीष सिसोदिया सिर्फ जंगपुरा का चुनाव लड़ रहे हैं वैसे ही केजरीवाल भी सिर्फ नई दिल्ली का चुनाव लड़ रहे हैं। वे भले प्रचार के लिए दूसरी सीटों पर भी जा रहे हैं और सभाएं आदि कर रहे हैं लेकिन वह औपचारिकता है। उनको अपनी सीट की चिंता सता रही है। भले वे धारणा प्रभावित होने के डर से दूसरी सीट से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी में इस पर गंभीरता से विचार किया है।
नई दिल्ली सीट को लेकर केजरीवाल और उनकी पार्टी की चिंता कितनी गहरी है वह उनकी बेचैनी से जाहिर है। भाजपा के उम्मीदवार प्रवेश वर्मा की चुनाव आयोग से शिकायत करने खुद केजरीवाल चुनाव आयोग गए। उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात की और ऐसी ऐसी मांग की, जैसी इससे पहले सुनने को नहीं मिली थी। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग प्रवेश वर्मा के घर पर छापा मरवाए क्योंकि वे महिलाओं को पैसे बांट रहे हैं। केजरीवाल की एक मांग यह थी कि नई दिल्ली के जिला निर्वाचन अधिकारी को निलंबित किया जाए या तबादला किया जाए। जाहिर है वे प्रवेश वर्मा की राजनीति से घबराएं हैं तो चुनाव आयोग के स्थानीय अधिकारियों को लेकर भी उनके मन में चिंता है। प्रवेश वर्मा की चिंता में ही उन्होंने केंद्र की ओबीसी सूची में दिल्ली के जाटों को शामिल करने और आरक्षण देने की मांग की है।
ऐसा नहीं है कि वे सिर्फ भाजपा के प्रवेश वर्मा से डरे हैं उनको कांग्रेस के संदीप दीक्षित से भी चिंता है। तभी उनकी पार्टी ने आरोप लगाया कि संदीप दीक्षित को चुनाव लड़ने के लिए करोड़ों रुपए भाजपा से मिल रहे हैं। दीक्षित ने इसके लिए मुख्यमंत्री आतिशी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह पर मुकदमा किया है। संदीप दीक्षित का आरोप है कि पंजाब पुलिस से उनकी निगरानी कराई जा रही है। असल में केजरीवाल को पिछली बार बहुत आसान चुनाव मिल गया था। भाजपा ने एकदम अनजान सुनील यादव को चुनाव लड़ाया था तो कांग्रेस ने रोमेश सबरवाल को टिकट दिया था। कुल 76 हजार वोट पड़े थे, जिसमें भाजपा को 25 हजार और कांग्रेस को 32 सौ वोट मिले थे। इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों ने बड़े नेता उतार दिए हैं। मोटामोटी डेढ़ लाख वोट वाले विधानसभा क्षेत्र है, जिसमें पिछली बार केजरीवाल 46,758 लेकर केजरीवाल जीत गए थे। लगातार तीन बार जीतने के बाद ही शीला दीक्षित हारी थीं। यह केजरीवाल का चौथा चुनाव है और वे बड़ी मुश्किल लड़ाई में फंसे हैं। शीला दीक्षित के काम को लोग याद कर रहे हैं। उससे केजरीवाल की तुलना हो रही है और लोग संदीप दीक्षित के प्रति सद्भाव दिखा रहे हैं। नतीजा जो लेकिन यह तय है कि केजरीवाल अब अपनी सीट पर ही घिरे रहने हैं।