कांग्रेस को अलग थलग करने या उस पर दबाव बनाने के प्रयास में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ चले गए हैं। वे कांग्रेस से इस बात से नाराज हैं कि उसने हरियाणा के विधानसभा चुनाव में सपा को एक भी सीट नहीं दी और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में सपा की ओर से घोषित सात सीटों की बजाय सिर्फ दो सीटें दीं। Delhi election
इससे दोनों के बीच तनाव इतना बढ़ा था कि उत्तर प्रदेश के नौ सीटों की उपचुनाव में कांग्रेस ने सपा की ओर से दी गई दो सीटें नहीं लीं और अकेले लड़ी सपा को सिर्फ दो सीटें मिल पाईं। अब सवाल है कि कांग्रेस ने हरियाणा में सीट नहीं दी या महाराष्ट्र में सिर्फ दो सीट दी तो अखिलेश उससे नाराज हो गए लेकिन दिल्ली में केजरीवाल भी तो कोई सीट नहीं दे रहे हैं फिर उनके साथ कैसे राजनीति होगी?
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ऐसा लग रहा है कि अखिलेश यादव को केजरीवाल से सीट नहीं लेनी है। उनको कांग्रेस से ही कुछ सीट मिलने की उम्मीद है। इसलिए वे केजरीवाल के साथ मंच साझा करके कांग्रेस पर दबाव बना रहे हैं। असल में सोमवार, 16 अक्टूबर को अरविंद केजरीवाल को अचानक निर्भया की याद आ गई तो उन्होंने 12 साल में पहली बार महिला अदालत लगा कर निर्भया अमर रहे के नारे लगवाए। उस कार्यक्रम के मंच पर अखिलेश यादव भी पहुंचे थे। ध्यान रहे केजरीवाल की पार्टी ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं, जबकि कांग्रेस ने अभी 21 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं तो हो सकता है कि अखिलेश यादव चाहते हों कि कांग्रेस उनके साथ तालमेल करे।
केजरीवाल के मंच पर जाने का दूसरा कारण यह हो सकता है कि प्रवासियों और मुसलमानों का वोट केजरीवाल के पक्ष में सुनिश्चित करने के लिए अखिलेश मेहनत कर रहे हों ताकि कांग्रेस की स्थिति में सुधार न हो। उनको कांग्रेस की चिंता ज्यादा सता रही है। अगर दिल्ली में मुसलमान कांग्रेस की ओर लौटे तो उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस का अखिलेश के ऊपर दबाव बढ़ेगा।