delhi assembly election : भारतीय जनता पार्टी 27 साल तक दिल्ली की सत्ता से बाहर रही। इस दौरान दिल्ली में भाजपा को संभालने और उसे बचाने के लिए जितने लोगों ने अपने को खपाया वे सारे नेता कट गए हैं।
ये नेता मुख्यमंत्री या मंत्री बनने की आस लगाए हुए थे। चुनाव जीत कर विधायक भी बन गए है। कई तो ऐसे हैं, जो 2015 के सबसे संकट के समय जीते तीन विधायकों में शामिल थे। उनको भी मौका नहीं मिला है।
विजेंद्र गुप्ता लगातार चुनाव जीत रहे हैं। संकट के समय प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और तीन विधायकों के विधायक दल के भी नेता रहे हैं। उन्होंने भी दिल्ली में पार्षद से सफर शुरू किया था। (delhi assembly election)
वैश्य समाज की मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उनका पत्ता कट गया। ऐसे ही मुस्तफाबाद में कमल खिलाने वाले छह बार के विधायक मोहन सिंह बिष्ट भी रह गए।
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भड़काऊ भाषणों के दम पर मंत्री (delhi assembly election)
ब्राह्मण समाज से मंत्री बनना था तो आम आदमी पार्टी से आए कपिल मिश्रा को मौका मिला। आप में रहते उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जैसी जैसी अभद्र और अश्लील टिप्पणियां की हैं, वैसी किसी ने नहीं की होगी।
लेकिन भड़काऊ भाषणों की अपनी योग्यता के दम पर वे मंत्री बन गए और बरसों झंडा ढोने वाले पवन शर्मा और सतीश उपाध्याय दोनों देखते रह गए। चार बार से विश्वासनगर सीट से जीत रहे ओमप्रकाश शर्मा भी मंत्री नहीं बन सके। (delhi assembly election)
ऐसे ही अकाली दल से जुड़े रहे मनजिंदर सिंह सिरसा को भी मौका मिल गया। पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे परवेश वर्मा को तो मौका मिल गया है लेकिन मदनलाल खुराना के बेटे हरीश खुराना को इंतजार करना होगा।