ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव में कोई चेहरा पेश नहीं करने जा रही है। दिल्ली में विधानसभा का चुनाव दो महीने में होने वाला है। जनवरी के शुरू में ही चुनाव की घोषणा हो जाएगी और फरवरी में मतदान होगा। फिर भी अभी तक भाजपा ने कोई चेहरा पेश नहीं किया है। अगर मुख्यमंत्री का दावेदार पेश करके लड़ना होता तो भाजपा अब तक ऐलान कर चुकी होती। असल में भाजपा को अपने मौजूदा नेतृत्व में से कोई चेहरा ऐसा नहीं दिख रहा है, जिस पर उसे हर वर्ग का समर्थन मिले। उसके पास ब्राह्मण, जाट, गूजर, पंजाब, वैश्य, प्रवासी हर वर्ग के नेता हैं लेकिन किसी की लोकप्रियता ऐसी नहीं है कि वह पलड़ा भाजपा के पक्ष में झुका दे।
अरविंद केजरीवाल अब भी दिल्ली के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उनकी लोकप्रियता का कारण उनकी लोक लुभावन घोषणाएं हैं। मुफ्त की छह रेवड़ी वे बांट रहे हैं और कहा है कि सातवीं जल्दी ही घोषित करेंगे। सोचें, दिल्ली में प्रदूषण से लोगों का दम घुट रहा है लेकिन केजरीवाल लोगों से यह पूछ रहे हैं कि मुफ्त की रेवड़ी चाहिए या नहीं। बहरहाल, लोकप्रियता के साथ साथ उनके पास प्रवासी, मुस्लिम और लाभार्थियों का एक बड़ा वर्ग प्रतिबद्ध वोटर के रूप में है। भाजपा इसको चुनौती देना चाहती है। पहले उसने सतीश उपाध्याय और मनोज तिवारी को आजमाया। लेकिन अब वापस पांरपरिक पंजाबी वोट की ओर लौटी है। यह वोट आमतौर पर भाजपा के साथ ही रहता है। उसे वैश्य और प्रवासी वोट के लिए काम करने की जरुरत होगी। डॉक्टर हर्षवर्धन को किनारे करके भाजपा ने नुकसान किया है। फिर भी उसके पास विजय गोयल, विजेंद्र गुप्ता, प्रवीण खंडेलवाल जैसे चेहरे हैं। बहरहाल, स्मृति ईरानी और बांसुरी स्वराज से लेकर मनोज तिवारी, प्रवेश वर्मा, रमेश विधूड़ी, जैसे अनेक नेता भाजपा के पास हैं, जिनके नाम पर विचार हुआ है। लेकिन पार्टी सामूहिक नेतृत्व में ही चुनाव लड़ती दिख रही है।