भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच कई मुद्दों पर विवाद चलता रहता है। आमतौर पर यह विवाद वैचारिक ही होता है लेकिन कई बार राजनीतिक विवाद भी होते हैं। खासतौर से उन राज्यों में जहां कम्युनिस्ट पार्टियों का थोड़ा बहुत आधार है और जहां उनको चुनाव लड़ने पर जीतने की संभावना रहती है। लेकिन अभी देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम और सबसे नई व अपेक्षाकृत ज्यादा क्रांतिकारी सीपीआई एमएल के बीच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को लेकर विवाद छिड़ गया है। विवाद यह है कि मोदी सरकार को फासीवादी या नव फासीवादी कहा जाए या नहीं कहा जाए। इस पर दोनों पार्टियों के बीच वैचारिक युद्ध छिड़ा है और इस आधार पर एमएल के नेता सीपीएम को समझौतावादी बता रहे हैं।
असल में इस साल सीपीएम की राष्ट्रीय कांग्रेस होनी है। महासचिव सीताराम येचुरी के निधन के बाद अस्थायी तौर पर प्रकाश करात पार्टी को संभाल रहे हैं। पार्टी कांग्रेस में नए महासचिव का चुनाव होगा। उससे पहले पार्टी कांग्रेस के लिए सीपीएम का राजनीतिक प्रस्ताव तैयार हुआ, जिसमें नरेंद्र मोदी सरकार को फासीवादी प्रवृत्ति का कहा गया। हालांकि बाद में पार्टी ने अलग से एक नोट जारी करके कहा कि वह मोदी सरकार को फासीवादी या नव फासीवादी नहीं मानती है। इस नोट के बाद से सीपीआई एमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य भड़के हुए हैं। उन्होंने सीपीएम को समझौतावादी बताया है और कहा कि केंद्र की मोदी सरकार फासीवादी सरकार है और ऐसा कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। हालांकि एमएल की आपत्तियों के बाद भी सीपीएम के राजनीतिक प्रस्ताव में अब कोई बदलाव नहीं होने वाला है।