बिहार में ऐसा लग रहा है कि सुशील कुमार मोदी का दौर समाप्त हो गया और उनके साथ ही भाजपा के कई और नेताओं का सितारा अस्त हो सकता है। ध्यान रहे सुशील मोदी कभी भी भाजपा के मौजूद नेतृत्व की पसंद नहीं रहे हैं। नीतीश कुमार से अपनी करीबी की वजह से वे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की आंखों में खटकते रहे हैं।
हालांकि 2017 में जब नीतीश वापस लौटे थे तो मजबूरी में सुशील मोदी को डिप्टी सीएम बनाना पड़ा था क्योंकि नीतीश ऐसा चाहते थे। जब 2020 में नीतीश की सीटें कम हो गईं और वे पूरी तरह से भाजपा पर निर्भर हुए तो भाजपा ने सुशील मोदी की बजाय दो दूसरे लोगों को उप मुख्यमंत्री बनाया और सुशील मोदी को राज्यसभा भेजा गया। तमाम कोशिश के बावजूद वे दिल्ली में मंत्री नहीं बन पाए। Bihar politics sushil modi
इस बार उनकी राज्यसभा खत्म हुई तो फिर उन्हें मौका नहीं मिला। भाजपा ने उनको टिकट नहीं दी। अब उनके समर्थकों को लग रहा है कि पहले कि उन्हें भागलपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। लेकिन इसकी संभावना बहुत कम दिख रही है। अब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बिहार में पूरी तरह से नीतीश और सुशील मोदी के दौर के नेताओं को हटा कर नए और इन दोनों का विरोध करने वाले नेताओं को आगे कर रही है।
इस बीच नीतीश कुमार की वापसी के बाद कहा जा रहा है कि भाजपा का मनोबल बढ़ा हुआ है और वह पुराने नेताओं की टिकट काट सकती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह और मौजूदा केंद्रीय मंत्री आरके सिंह की टिकट खतरे में बताई जा रही है। इनकी पूर्वी चंपारण और आरा सीट से नए उम्मीदवार आ सकते हैं। औरंगाबाद में सुशील सिंह, पटना साहिब में रविशंकर प्रसाद, शिवहर में रमा देवी, बेगूसराय में गिरिराज सिंह और बक्सर में अश्विनी चौबे की टिकट भी मुश्किल दिख रही है। Bihar politics sushil modi