bihar budget : ऐसा लग रहा था कि बिहार में चुनावी बजट पेश होगा। इसी साल बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले बजट एक बड़ा मौका था, जिससे चुनावी मैसेज बनवाने का काम हो सकता था।
लेकिन उप मुख्यमंत्री और राज्य के वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने बजट पेश किया तो वह रूटीन का बजट था। जैसे पिछली बार का बजट था ठीक वैसा ही बजट इस बार भी पेश किया गया।
जैसे हर साल हर राज्य के बजट में बढ़ोतरी होती है वैसे ही बिहार में पिछले साल के मुकाबले साढ़े 13 फीसदी से कुछ ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। सोचें, पड़ोसी राज्य झारखंड में भी सोमवार को ही बजट पेश हुआ और वहां भी 13 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
यानी चुनाव के ठीक बाद का जो आमतौर पर ठंडा बजट होता है उसमें झारखंड में जितनी बढ़ोतरी हुई बिहार में चुनावी साल में भी उतनी ही बढ़ोतरी हुई। (bihar budget)
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अनुशासन में बजट तैयार (bihar budget)
आमतौर पर चुनावी साल में सरकारें वित्तीय अनुशासन का ध्यान नहीं रखती हैं। परंतु बिहार सरकार ने बिल्कुल अनुशासन में बजट तैयार किया। वित्त वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा 4.17 फीसदी रहा लेकिन चुनावी साल में वित्त वर्ष 2025-26 में राजकोषीय घाटा वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक 2.98 फीसदी पर सीमित रखने का फैसला किया गया।
इसी अनुपात में बजट के प्रावधान किए गए। चुनावी साल की वजह से उम्मीद की जा रही थी कि बिहार सरकार कुछ बड़ी घोषणाएं करेगी। कोई नई योजना लागू की जाएगी। सरकार ने कुछ योजनाओं की घोषणा की लेकिन सारी छोटी छोटी योजनाएं हैं। ऐसी योजनाएं, जिनसे कोई मैसेज नहीं बनता है।
विकास दर बढ़ाने या पलायन रोकने या राज्य में औद्योगिक विकास के लिए कोई बड़ी पहल बजट में नहीं दिखी। शिक्षा का बजट जरूर 54 हजार करोड़ से बढ़ा कर 60 हजार करोड़ कर दिया गया। (bihar budget) लेकिन इसका ज्यादातर पैसा तो शिक्षकों को वेतन और पेंशन देने में खर्च होता है। इससे शिक्षा का कोई सुधार नहीं होने वाला है।
मुफ्त की रेवड़ी की कोई घोषणा नहीं
सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि बजट में मुफ्त की रेवड़ी की कोई घोषणा नहीं हुई। सबको भरोसा था कि सरकार महिलाओं को नकद पैसे देने की योजना का ऐलान करेगी और साथ ही वृद्धावस्था पेंशन में बढ़ोतरी की घोषणा भी होगी।
दो सौ यूनिट तक बिजली फ्री करने की घोषणा का भी इंतजार किया जा रहा था। यह उम्मीद उतनी पक्की थी कि (bihar budget) नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बजट से एक दिन पहले इन सबकी मांग कर दी थी ताकि बजट में घोषणा हो तो वे इसका श्रेय ले सकें। लेकिन इनमें से कोई भी घोषणा बजट में नहीं की गई। इससे दो बातें साफ हो गईं।
पहली तो यह कि राज्य में विधानसभा का चुनाव तुरंत यानी समय से पहले नहीं होने जा रहा है और दूसरी बात यह है कि इस बजट पर एनडीए चुनाव लड़ने नहीं जा रहा है।
चुनाव तो मुफ्त की घोषणाओं पर ही लड़ा जाएगा लेकिन ऐसा लग रहा है कि सारी घोषणाएं चुनाव नजदीक आने पर होंगी और हो सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से की जाएं। (bihar budget)
अगर ऐसा होता है तो यह और स्पष्ट होगा कि एनडीए प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर बिहार का चुनाव लड़ेगा और अगर बहुमत मिला तो चुनाव के बाद मुख्यमंत्री भाजपा का होगा। इसका यह भी मतलब होगा कि नीतीश कुमार के लंबे राजनीतिक करियर का अंत होने जा रहा है।