bihar assembly election : बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा का चुनाव होने वाला है और उससे पहले राज्य में जैसी राजनीति हो रही है वह चौंकाने वाली है।
एक तरफ एनडीए की पार्टियों में शह और मात का खेल चल रहा है तो दूसरी ओर ‘इंडिया’ ब्लॉक, जिसे बिहार में महागठबंधन कहते हैं उसमें भी खींचतान चल रही है।
यह खींचतान दो स्तरों पर है। महागठबंधन की पार्टियों, खास कर राजद और कांग्रेस के बीच खींचतान है तो कांग्रेस के अंदर भी घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस पार्टी ने 16 मार्च को पश्चिमी चंपारण के भितिहरवा में स्थित गांधी आश्रम से ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा शुरू की है। (bihar assembly election)
कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के प्रभारी और पूर्व कम्युनिस्ट नेता कन्हैया कुमार इस यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं। कांग्रेस के दो फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन, एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के हाथ में यात्रा का समन्वय है।
यानी प्रदेश कांग्रेस कमेटी काफी हद तक इससे दूर है। हालांकि यात्रा शुरू होने के मौके पर प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और राज्य के नए प्रभारी कृष्णा अलावारू भी मौजूद थे। (bihar assembly election)
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कन्हैया कुमार और अखिलेश दोनों एक ही जाति के
इस बात की संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बदल सकती है। कन्हैया कुमार और अखिलेश प्रसाद सिंह दोनों एक ही जाति के हैं (bihar assembly election)
अगर कांग्रेस यह योजना बना रही है कि कन्हैया की यात्रा से चुनाव का माहौल बनाना है और बाद में उनको चुनाव अभियान की जिम्मेदारी सौंपनी है तो एक ही अगड़ी जाति के दो लोगों को दोनों महत्वपूर्ण पदों पर रखना मुश्किल होगा।
हालांकि सबको पता है कि चुनाव की तैयारियों, तालमेल और संसधान के प्रबंधन में अखिलेश सिंह की बराबरी करने वाला कोई चेहरा कांग्रेस के पास नहीं है। फिर भी कहा जा रहा है कि अखिलेश सिंह इन दिनों कन्हैया को मिल रही तवज्जो से परेशान हैं। (bihar assembly election)
कन्हैया के अलावा कांग्रेस आलाकमान पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को भी आगे बढ़ा रहा है। इससे भी अखिलेश सिंह को परेशानी है। गौरतलब है कि अखिलेश सिंह दो साल से कांग्रेस अध्यक्ष हैं लेकिन अभी तक वे अपनी कमेटी गठित नहीं कर पाए हैं।
कांग्रेस की यात्रा में राजद का कोई नेता नहीं (bihar assembly election)
कांग्रेस के अंदर खींचतान के अलावा महागठबंधन में भी तनाव है क्योंकि राजद के नेता कांग्रेस की इस सक्रियता को पसंद नहीं कर रहे हैं। राजद को हमेशा लगता है कि कांग्रेस को स्वतंत्र राजनीति करने की बजाय उसके साथ मिल कर और उसके हिसाब से राजनीति करनी चाहिए।
दूसरी ओर कांग्रेस ने ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेतृत्व ममता बनर्जी को सौंपने के मामले में लालू प्रसाद का जो नजरिया देखा और लोकसभा चुनाव के बाद हुए राज्यों के चुनावों में सहयोगी पार्टियों का जो रवैया देखा उसके बाद स्वतंत्र राजनीति करने का फैसला हुआ। (bihar assembly election)
कांग्रेस तालमेल करेगी लेकिन राजद की शर्तों पर नहीं, बल्कि अपनी शर्तों पर। तभी कन्हैया और पप्पू यादव को आगे किया, जिनके प्रति लालू प्रसाद के परिवार का लगभग नफरत करने वाला भाव है, जबकि अखिलेश सिंह के प्रति लालू परिवार का पूरा सद्भाव है।
कांग्रेस की यात्रा शुरू हुई तो उसमें राजद का कोई नेता शामिल नहीं हुआ। याद करें राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन हरी झंडी दिखाने पहुंचे थे। (bihar assembly election)
इस यात्रा में भी लालू या तेजस्वी में से कोई शामिल हो सकता था लेकिन सब इससे दूर रहे। इससे पहले राहुल ने पटना के दो दौरे किए तो दोनों कार्यक्रम कांग्रेस ने स्वतंत्र रूप से किया। कांग्रेस की इस राजनीति के बाद राजद को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना पड़ रहा है।