aurangzeb tomb issue : महाराष्ट्र में औरंगजेब के नाम पर घमासान मचा हुआ है। इस बीच राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि औगंरजेब की आज कोई प्रासंगिकता नहीं है।
उन्होंने नागपुर दंगों की निंदा की और साथ ही औरंगजेब के मुद्दे पर विरोध, प्रदर्शन पर भी सवाल उठाया। तभी सवाल है कि औरंगजेब किसका आइडिया था और इसके पीछे क्या कोई बड़ी राजनीति है?
यह सवाल इसलिए है क्योंकि राजनीतिक हलके में प्रचारित साजिश थ्योरी के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी में दूसरी कतार के नेताओं में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा छिड़ी है। दूसरी कतार में एक रेखा पर खड़े कई नेताओं में यह होड़ मची है कि उसके नेतृत्व को श्रेष्ठ माना जाए। (aurangzeb tomb issue)
वह समानों में प्रथम माना जाए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद उसको उत्तराधिकार की होड़ में सबसे आगे माना जाए। कहा जा रहा है कि इसी होड़ का नतीजा है कि महाराष्ट्र में औरंगजेब के नाम पर इतना विवाद खड़ा कराया गया। यह भी कहा जा रहा है कि यह विवाद अभी तुरंत थमने वाला नहीं है।
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आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर के बयान की शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने भी तारीफ की है। सो, सवाल है कि जब आरएसएस का यह आइडिया नहीं था और आरएसएस यह मान रहा है कि औरंगजेब अब प्रासंगिक नहीं है तो फिर कैसे महाराष्ट्र में और वह भी आरएसएस के मुख्यालय वाले शहर नागपुर में इतना बड़ा प्रदर्शन हुआ, जिसके बाद दंगे भड़के? क्या मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने अपना राजनीतिक दांव साधने के लिए इस विवाद को हवा दिया?
कहा जा रहा है कि भाजपा में दूसरी कतार के नेताओं में छिड़ी उत्तराधिकार की लड़ाई फिलहाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगे चल रहे हैं। (aurangzeb tomb issue)
उनकी चुनौती का मुकाबला करने के लिए महाराष्ट्रर के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को किसी ऐसे मुद्दे की तलाश थी, जिस पर वे एक वैचारिक और राजनीतिक आंदोलन खड़ा कर सकें।
उनकी अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए जरूरी है कि जैसे पूरा गुजरात नरेंद्र मोदी के पीछे खड़ा हुआ वैसे महाराष्ट्र उनके पीछे खड़ा हो। ध्यान रहे महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं। (aurangzeb tomb issue)
दो चुनावों में उन्होंने अपनी ताकत दिखाई
महाराष्ट्र में पहली बार भले भाजपा नेतृत्व ने देवेंद्र फड़नवीस को कम जनाधार वाले और अपेक्षाकृत कम चर्चित नेता के तौर पर मुख्यमंत्री के लिए चुना। लेकिन उसके बाद दो चुनावों में उन्होंने अपनी ताकत दिखाई।
अब उनको लग रहा है कि लोकसभा वे लोकसभा सीटों की संख्या के लिहाज से दूसरे सबसे और आर्थिक रूप से सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं और अगर उनको किसी भावनात्मक मुद्दे के साथ मिल जाता है तो वे हिंदू हृद्य सम्राट हो सकते हैं, जैसे 2002 के बाद नरेंद्र मोदी हुए थे।
दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ का भव्य आयोजन कराया है और अयोध्या, मथुरा, काशी से लेकर संभल और शाहजहांपुर तक किसी न किसी मामले में वे भावनात्मक मुद्दे उठाए हुए हैं। (aurangzeb tomb issue)
उधर असम में हिमंत बिस्वा सरमा मदरसों, मस्जिदों, मियां मौलवी का मुद्दा उठा कर इन दोनों के मुकाबले अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं।
तभी ऐसा लग रहा है कि औरंगजेब का मुद्दा कोई तात्कालिक मकसद वाला नहीं है। योजनाबद्ध तरीके से सपा विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब पर बयान दिया और उसके बाद मुख्यमंत्री ने कब्र हटाने की बहस छेड़ी। (aurangzeb tomb issue)