एक चुनावी हार ने अरविंद केजरीवाल को कहां से कहां पहुंचा दिया! यह तमाम एकाधिकारवादी और अपने इलहाम में राजनीति करने वाले नेताओं के लिए सबक है। केजरीवाल ने पार्टी की सारी राजनीति अपने इर्द गिर्द सीमित रखा। तमाम संस्थापक और समझदार नेताओं को पार्टी से बाहर निकाल दिया। अपने करिश्मे पर राजनीति और नतीजा क्या हुआ? जैसे ही करिश्मा कम हुआ और चुनाव हारे वैसे ही अपनी ही पार्टी में स्थिति इतनी कमजोर हो गई कि अपने लिए एक राज्यसभा सीट के लिए मोलभाव करनी पड़ रही है। अरविंद केजरीवाल की ऐसी स्थिति नहीं रह गई कि कोई उनके लिए एक सीट खाली कर दे। इससे पहले दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने अपनी पार्टी की महिला सांसद से सीट खाली करने को कहा था और उन्होंने मना कर दिया था। तब केजरीवाल किसी और को उनकी कानूनी सेवाओं के बदले राज्यसभा भेजना चाहते थे। लेकिन इस बार तो उनको अपने लिए राज्यसभा चाहिए थी और किसी ने इस्तीफे की पेशकश नहीं की।
जब कहीं से इस्तीफा नहीं हुआ तो अंत में मोलभाव का रास्ता निकाला गया। बताया जा रहा है कि पंजाब के राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को राज्य सरकार में मंत्री बनाने का वादा किया गया है। उनको पार्टी लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव में उतार रही है। अभी उस सीट पर उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई है लेकिन पार्टी ने अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर दिया। वे विधानसभा चुनाव जीतेंगे तो मंत्री बनेंगे और उनके इस्तीफे से जो सीट खाली होगी उस पर केजरीवाल राज्यसभा जाएंगे। वे 2022 में राज्यसभा गए थे। सो, उनकी सीट का कार्यकाल 2028 तक है। सवाल है कि अगर सभी पार्टियों ने अंदरखाने तालमेल कर लिया और संजीव अरोड़ा नहीं जीत सके तो क्या होगा? इसी चिंता में अरोड़ा पहले इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। सोचें, केजरीवाल कितने दयनीय हो गए हैं कि पहले तो किसी राज्यसभा सांसद ने पद नहीं छोड़ा और जिसने राज्य सरकार में मंत्री पद के लिए मोलभाव की वह भी विधानसभा चुनाव जीतने से पहले इस्तीफा देने को तैयार नहीं है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल के प्रतिनिधियों ने पंजाब के कारोबारी अशोक मित्तल से बातचीत की। आजकल केजरीवाल मित्तल को मिले पांच, फिरोजशाह रोड के बंगले में ही रहते हैं। बताया जा रहा है कि मित्तल सीट खाली करने के लिए तैयार नहीं हुए। उनके राज्यसभा सांसद बनने के पीछे की कई कहानियां प्रचलित हैं लेकिन उनमें जाने की जरुरत नहीं है। आम आदमी पार्टी में उनके ‘महान’ योगदान के देखते हुए लोग सहज ही अंदाजा लगा लेते हैं कि वे कैसे राज्यसभा पहुंचे। यह भी खबर है कि केजरीवाल के नंबर दो नेता मनीष सिसोदिया ने अपने बेटे को अमेरिका में पढ़ाने के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपए अनसिक्योर लोन ‘दोस्तों’ से लिया है। उनमें एक ‘दोस्त’ अशोक मित्तल भी हैं, जिन्होंने 90 लाख से ज्यादा रुपए सिसोदिया को दिए हैं। बहरहाल, क्रिकेटर हरभजन सिंह से भी इस्तीफा कराने की बात हुई थी लेकिन वे भी पकड़ में नहीं आए। आम आदमी पार्टी के चुनाव रणनीतिकार संदीप पाठक या किसी और की सीट खाली कराने का प्रयास किया जा सकता था लेकिन केजरीवाल नया स्वाति मालीवाल बनाना नहीं चाहते हैं।