पिछली बार किसान दिल्ली घेर कर बैठे तो एक साल में सरकार ने उनकी मांग मान ली थी और ठीक एक साल बाद उनका आंदोलन खत्म हुआ था। केंद्र सरकार ने तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस ले लिया था। लेकिन उस समय किसानों की अन्य मांगों को लेकर भी केंद्र ने वादा किया था, जिन्हें पूरा नहीं किया गया। उन मांगों को लेकर अब किसान एक साल से ज्यादा समय से पंजाब और हरियाणा की सीमा पर आंदोलन कर रहे हैं। इस बार किसी तरह से उनको दिल्ली नहीं आने दिया गया है। जब भी किसान दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं तो उनको घग्गर नदी के पुल पर रोक दिया जा रहा है। हरियाणा की पुलिस उनसे पूछ रही है कि उनके पास दिल्ली जाने की परमिशन है या नहीं। सोचें, किसानों को अपना जत्था लेकर दिल्ली आने के लिए पहले से परमिशन लेने की जरुरत है!
इस बीच किसानों के साथ केंद्र सरकार ने किस्तों में बात शुरू कर दी है। ऐसा लग रहा है कि सरकार ने वार्ता की मासिक किस्तें बांधी हैं। महीने में एक बाद वार्ता होती है। सोचें, बुजुर्ग और बीमार किसान जगजीत सिंह डल्लेवाल करीब एक सौ दिन से अनशन पर हैं। पंजाब और हरियाणा की सीमा पर शंभु और खनौरी बॉर्डर पर हजारों किसान एक साल से आंदोलन कर रहे हैं और सरकार महीने में एक बार वार्ता करने की औपचारिकता कर रही है। सवाल है कि कितने महीने तक वार्ता का यह सिलसिला चलेगा? पिछली बार के किसान आंदोलन का एक साल का रिकॉर्ड 11 फरवरी को टूट चुका है। नया रिकॉर्ड बन चुका है। लेकिन सरकार लगता है कि और भी बड़ा रिकॉर्ड बनवाना चाहती है। सरकार चाहती है कि किसान दुनिया के सबसे लंबे आंदोलन का रिकॉर्ड बनाएं, शायद इसलिए बातचीत करके आंदोलन जल्दी खत्म कराने की पहल नहीं कर रही है।