nayaindia Joe Biden vs Donald Trump पर बाइड़न की हिम्मत कायम!
श्रुति व्यास

पर बाइड़न की हिम्मत कायम!

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जो बाइडन के लिए वह एक बुरी शाम थी।वह अमेरिका और उसके लोकतंत्र के लिए भी बुरी शाम थी।27 जून की शाम टीवी पर जो डिबेट हुई, वह अपनी तरह की अनोखी थी। वह दो बुजुर्गों में मुकाबला था। दो बुजुर्ग लड़ रहे थे। मगर चिंगारियां नहीं फूट रहीं थीं, आग नहीं निकल रही थी।  और इसमें जो बात दुखी करने वाली मगर साथ ही हिम्मत बंधाने वाली थी वह यह थी कि एक नेकनीयत बुजुर्ग पूरी ताकत से एक दुष्ट, आतातायी व्यक्ति का मुकाबला कर रहा था। ऐसा दुष्ट जो अब तक लगातार, बेधड़क, बेतहाशा झूठ बोलता आ रहा है।जो पूरी निर्लज्जता से, आत्मविश्वास के साथ, मुस्कराते हुए और मजाक में भी झूठ बोलता है। एक ऐसा दुष्ट जो अराजकता पैदा करने पर तुला हुआ है।तभी अपनी जगह यहां यह कहा सही है कि राजनीति में क्या है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है क्या दिख रहा है – ऑप्टिक्स आर मोर इम्पोर्टेन्ट देन फैक्ट्स।

डिबेट में राष्ट्रपति बाइडन का एकमात्र लक्ष्य विरोधियों और आलोचकों के साथ-साथ अपने शुभचिंतकों को बतलाना था कि वे डोनाल्ड़ ट्रंप से निपटने का दमखम रखते हैं। पिछले कुछ महीनों में बहुतों ने तय कर लिया है कि वे उन खबरों, चित्रों और जूम एवं ओवर जूम की गई तस्वीरों को नजरअंदाज करेंगे, जिनमें बाइडन की सेहत गिरती और बिगड़ती दिखती है। कई लोग इन पर इसलिए यकीन नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें डोनाल्ड ट्रंप का शैतान दिमाग, बाइडन की बढ़ती उम्र से ज्यादा खतरनाक लगता है।

लेकिन 90 मिनट की टीवी बहस के बाद यह साफ हुआ कि 2024 के बाइडन  2019 के बाइडन नहीं है। उनमें अब पहले जैसी शारीरिक-मानसिक क्षमता नहीं है जो अस्थिरता और अनिश्चितता भरे मौजूदा दौर का सामना करने के लिए जरूरी है।

बहस के बाद अमेरिकी लोगों की तस्वीरें उनके मूड के बारे में बहुत कुछ बताती हैं। कई लोगों की आंखों और चेहरे पर उदासी और निराशा नजर आई। माहौल में मायूसी और आसन्न संकट की आशंका है। लोग चकित थे, शॉक में थे, ऐसा लग रहा था कि उन्हें गहरा आघात लगा है। अमेरिकी व्याकुल और चिंतित हैं। मेरे एक मित्र, जो हाल में यूके छोड़कर अमेरिका में बसे हैं, के मन में बार-बार सवाल उठ रहा है कि “क्या मैंने अमेरिका में बसना तय करके गलती कर दी है?”

सचमुच परेशान करने वाली स्थिति थी और है। सिर्फ अमेरिकियों के लिए नहीं बल्कि दूसरे देशों के बहुत से लोगों के लिए भी। जिस समय ट्रंप कुटिल झूठों की गंगा बहा रहे थे और बेवकूफी भरी लेकिन लोगों को सम्मोहित करने वाली बातें कह रह थे, उस समय 81 साल के बाइडन सहमे हुए तथा भ्रमित दिख रहे थे। राष्ट्रपति की आवाज में लड़खड़ाहट थी।उनके कथन अस्पष्ट थे। वे जवाब देते हुए हकला रहे थे। कई बार लगा कि उनकी याददाश्त उनका साथ नहीं दे रही है। वे विभ्रम के शिकार हैं। वे दुविधाग्रस्त लगे और उन्होंने उनकी काबिलियत पर शक करने वालों को यकीन दिला दिया कि वे चुनावी मुकाबले के लिए अक्षम हैं। और यदि वे जीत गए (जिसकी संभावना लगभग शून्य है) तो वे चार साल शासन करने के लायक नहीं होंगे।

डिबेट देखते समय मुझे जो बाइडन के प्रति सहानुभूति महसूस हुई। लेकिन सहानुभूति से अधिक मेरे मन में उनके प्रति सम्मान बढ़ा। अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत, जो इस उम्र तक राजनीति से सन्यास लेकर चैन भरा जीवन जीते थे, सुकून से अपने शौक पूरे करते थे और अपने नाती-पोतों के साथ समय बिताते थे, जो बाइडन इस उम्र में भी तमाम झंझटों में उलझे हुए हैं। अपनी आधी जिंदगी राजनीति और निजी जीवन की त्रासदियों में गुजारकर वे अभी भी अमेरिका की जनता की सेवा में समर्पित है। जूझ रहे हैं औरट्रंप से लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। शरीर भले ही उनका साथ नहीं दे रहा हो, लेकिन वे मैदान छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं – न दैन्यम् न पलायनम।

कई लोगों का मानना है कि बाइडन किसी भी तरह सत्ता पर काबिज रहना चाहते हैं। इसलिए वे स्वयं को ट्रंप द्वारा लोकतंत्र के लिए पैदा किए गए खतरे का मुकाबला करने में सबसे सक्षम व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि न तो पहले और न आज ऐसा कोई डेमोक्रेट नेता है जिसमें ट्रंप की दंभ भरी मूर्खता और असीम कुटिलता से मुकाबला करने के लिए जरूरी दृढ़ता और साहस हो।81 साल के जो बाइडन इसलिए मैदान में उतरे हैं क्योंकि न तो कमला हैरिस (जिनकी एप्रूवल रैटिंग बाइडन से थोड़ी सी ही अधिक है) और न ही केलिफोर्निया के पूर्व गवर्नर गेविन न्यूसम, ट्रंप का मुकाबला करने के लायक दिख रहे थे। ऐसा कोई उम्मीदवार नहीं था जो ट्रंप का आलोचक भी हो और जिसका राष्ट्रपति बनने लायक व्यक्तित्व भी हो।

निःसंदेह टीवी बहस बाइडन के लिए बड़ी हार थी। और बाइडन के प्रति अमरीकी मीडिया का रवैया अत्यंत कठोर था। न्यूयार्क टाईम्स के संपादक मंडल का निष्कर्ष धक्का पहुंचाने वाला था। संपादक मंडल की राय थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने बुढ़ापे से पैदा हुई अक्षमता का ऐसा शानदार प्रदर्शन किया है कि जिस देश की सेवा उन्होंने आधी सदी से भी अधिक समय तक की है, उसके लिए उनका सर्वोत्तम योगदान अब यही होगा कि वे दौड़ से हट जाएं और अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी को कोई अन्य उम्मीदवार चुनने का अवसर दें।‘द एटलांटिक’ में छह लेख प्रकाशित हुए। उन सभी में बाइडन की उम्मीदवारी ख़त्म करने के पक्ष में तर्क दिए गए। इसके अलावा टाईम पत्रिका ने अपने मुखपृष्ठ पर लाल रंग में बड़े-बड़े अक्षरों में ‘पैनिक’ शब्द की पृष्ठभूमि में  बाइडन की तस्वीर छापी।

मीडिया बाइडन पर दबाव बना रहा है कि वे अपनी विरासत और साख की खातिर तुरंत चुनावी मैदान से हट जाएं। उन्हें और सिलिकॉन वैली की बड़ी हस्तियों को उम्मीद है कि जिल बाइडन अपने पति को दौड़ से हटने के लिए राजी कर लेंगी। यह संदेश पूरी स्पष्टता और मजबूती से दिया जा रहा है। और कदाचित व्यावहारिक भी है। लेकिन अब खतरे की घंटी बजाने के लिए बहुत देर हो चुकी है।

दूसरी ओर जो बाइडन अब तक अविचलित हैं। उनका मनोबल कायम है। उनका दृढ़ विश्वास है कि कोई भी अन्य डेमोक्रेट डोनाल्ड ट्रंप और उनकी दुष्टता का मुकाबला करने के काबिल नहीं है।

बहस के बाद वे शुक्रवार को पहले से अधिक उत्साहित दिखलाई दिए।उत्तरी कैरोलाईना में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने बेलागी से स्वीकार किया कि “मैं अब पहले जितने अच्छे दर्जे की डिबेट नहीं कर पाता”। उन्होंने उनके पक्ष में नारेबाजी करती भीड़ से कहा “मैं जानता हूं कि सच कैसे बताया जाए…मैं यह काम करना जानता हूं। मैं दसियों लाख अमेरिकियों की तरह जानता हूं कि जब आपको गिराने की कोशिश की जाती है तो आपको थामने के लिए कई हाथ आगे बढ़ जाते हैं”।

यह सच है कि जो बाइडन सत्ता पर काबिज रहने की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, वे अमरीकी लोकतंत्र को बनाये रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

बावजूद इसके 27जून की शाम अमेरिका के लिए वाकई बहुत बुरी थी। सारी दुनिया के तानाशाह आनंदित होंगे और जश्न मना रहे होंगे। मेरे मित्र की चिंता भी सही है। सभी जगह माहौल चुनौतीपूर्ण है।अमेरिका और दुनिया दोनों के सामने अनिश्चित भविष्य है।

इस साल दुनिया भर में हुए चुनावों के नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं। जनता की राय अप्रत्याशित रही है। भारत इसका बड़ा उदाहरण है। यदि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र कायम रहता है और सर्वोच्च नेता को उसकी हैसियत बता दी जाती है तो दुनिया के सबसे पुराने आधुनिक लोकतंत्र में भी ऐसा आश्चर्यजनक नतीजा क्यों नहीं हो सकता?

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्तमान दौर में युवाओं की आवाज और उनके सरोकार महत्वपूर्ण बन गए हैं।अमेरिका में एक के बाद एक हुए चुनावी सर्वेक्षणों में युवाओं ने गाजा में हुई बर्बादी के बावजूद जो बाइडन के साथ खड़े रहने की बात कही है। यह पूरी तरह वाजिब है कि वे जानना चाहते हैं कि दुबारा चुने जाने पर बाइडन उनके लिए क्या करेंगे? और जो बाइडन ने यह साबित कर दिया है कि वे जीत सकते हैं। डिबेट में हारने के बाद, अगली शाम, बुजुर्गों की आम समस्याओं से ग्रस्त होने के बावजूद उन्होंने दृढ़तापूर्वक लड़ने जाने का संकल्प प्रदर्शित किया।

निसंदेह जब मनोबल ऊंचा हो तो अकेले लड़ता हुआ आदमी, निराशापूर्ण हालात में भी और अधिक दृढ़ बन सकता है।और बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। मुझे ऐसा लगता है कि सिर्फ मीडिया, सोशल मीडिया मीम्स और सिलीकॉन वैली के दिग्गज बाइडन को मैदान से हटाने के लिए काफी नहीं होंगे। क्योंकि हम सब जानते हैं कि जब लोगों को एक दुष्ट और एक बुजुर्ग में से किसी एक को चुनना पड़ेगा तो वे किसे चुनेंगे। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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