कल ब्रिटेन में नई सरकार, नए प्रधानमंत्री और उम्मीदों में लोग वोट डालेंगे। जैसा कि 22 मई को ऋषि सुनक ने कहा था, “ब्रिटेन के लिए अपना भविष्य चुनने का क्षण आ गया है”। ऋषि सुनक ने भी पड़ोसी देश फ्रांस के इमैनुएल मैक्रों की तरह, जल्दबाजी में समय से पहले चुनाव का फैसला किया है। साढ़े पांच हफ्ते पहले, वसंत की ठंडी और बेरहम बारिश के बीच, सुनक ने अचानक घोषणा की थी कि देश में 4 जुलाई को चुनाव होगा।
ब्रिटेन की राजनैतिक प्रणाली ऐसी है कि उसमें सत्ताधारी सरकार को अधिकार होता है कि वह पांच साल के पहले कभी भी अपनी इच्छानुसार चुनाव करवा सकती है। ऋषि सुनक के मामले में पांच साल जनवरी 2025 में पूरे हो रहे थे। कई लोगों का मानना था कि वे इस साल के अंत में चुनाव करवाएंगे, तब जब अर्थव्यवस्था बेहतर हो चुकी होगी और जिसका फायदा उनकी कंजरवेटिव पार्टी को मिलेगा।
लेकिन ऋषि सुनक ने – संभवतः अति-आत्मविश्वास के कारण या फिर डर के चलते – चुनाव जल्दी करवाने की घोषणा की। उनका विचार था कि यह समय ठीक है क्योंकि उनके राज में हाल के महीनों में कुछ उपलब्धियां हासिल हुई हैं – मुद्रास्फीति की दर में गिरावट आई है, अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर, थोड़ी ही सही, मगर बढ़ी है, प्रवासियों का आना कुछ कम हुआ है और अवैध प्रवासियों को रवांडा भेजने की योजना को कानूनी जामा पहना दिया गया है। सुनक को लगा कि यही उनके लिए भी राममंदिर के उद्घाटन का क्षण है! अर्थव्यवस्था उछाल पर है और उन्हें मौके का फायदा उठाना चाहिए।
हमारे चुनावों पर राममंदिर के उद्घाटन का कितना असर हुआ, यह हम सब अच्छे से जानते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इससे फायदा उठाने की उम्मीद प्रचार दौरान ही धूल में मिल गई थी। ठीक उसी तरह ऋषि सुनक को भी हार का मुंह देखना पड़ेगा। यह सिर्फ हार नहीं होगी बल्कि उनकी पार्टी का पूरा सफाया भी होगा। रायशुमारियों से पता चल रहा है कि लेबर पार्टी बहुत मजबूत स्थिति में है और उसे जबरदस्त जीत हासिल होने जा रही है।
यूके में जो माहौल है, उससे ही बहुत कुछ जाहिर हो रहा है। सुनक और उनकी पार्टी दोनों से जनता का मोहभंग है। जनता बुरी तरह नाराज़ है। वहां के लोग 14 साल के कंजरवेटिव राज को ख़त्म करना चाहते हैं। इस सरकार के ब्रेक्सिट ने देश का भारी नुकसान किया है। कंजरवेटिवों (जिन्हें टोरी भी कहा जाता है) की सरकार पर पकड़ और जनता में उनकी साख, बोरिस जॉनसन की ब्रेक्सिट के सहारे सन् 2019 में जेरेमी कोर्बिन के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी पर हासिल की गई बड़ी जीत के बाद से घटती ही आई है। अभी हाउस ऑफ कामन्स की 650 में से 345 सीटें कंजरवेटिव पार्टी के पास हैं। और हालात इतने खराब हैं कि यदि पार्टी इस चुनाव में इससे आधी सीटें भी जीत लेती है तो उसे सफलता माना जाएगा। ऐसा नतीजा टोनी ब्लेयर और उनकी न्यू लेबर पार्टी की 1997 में हुई जबरदस्त जीत के बाद से कंजरवेटिव पार्टी की सबसे बड़ी हार होगी।
कुछ लोगों को उम्मीद थी – और टोरियों को तो निश्चित ही थी – कि ऋषि सुनक ब्रिटिश जनता के जख्मों और ब्रेक्सिट के बाद बने बुरे हालातों पर मरहम लगाने का काम करेंगे। बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस के 49 दिन के कार्यकाल में हुई बर्बादी का असर कम करेंगे।
लेकिन सुनक इन उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। सुनक प्रतिभाशाली भी हैं और कुबेरपति भी। वे ब्रिटेन के सम्राट से ज्यादा धनी हैं। मगर प्रवासी माता-पिता के इस पुत्र का ज़मीन से बहुत कम ही जुड़ाव रहा है। हाल में आईटीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में, जिसके लिए वे डीडे (द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों का धुरी राष्ट्रों पर सबसे बड़ा हमला) की 80वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह से जल्दी चले गए थे, में यह पूछे जाने पर कि उन्हें बचपन में कौन-कौन से त्याग करने पड़े, उन्होंने कई बार ‘बहुत से‘ कहने और काफी सोचने के बाद कहा कि उन्हें स्काईटीवी का एंटरटेनमेंट पैकेज नहीं मिल सका था! फिर उन्होंने नोर्मंडी से जल्दी चले आने के लिए माफ़ी मांगी और मतदाताओं से कहा कि वे “दिल कड़ा कर उन्हें माफ़ कर दें”। यही बात इसी टोन में वे असंख्य बार कह चुके हैं।
सुनक के डीडे समारोह में पूरे समय तक मौजूद न रहने की खूब आलोचना हुई है। नाइजेल फराज ने कहा कि “प्रधानमंत्री भारतीय मूल के ब्रिटिश हैं और हमारे इतिहास और हमारी संस्कृति से अपरिचित हैं”। उस समय नाइजेल को रिफार्म यूके पार्टी के नेता के रूप में चुनाव मैदान में कूदे कुछ ही दिन हुए थे। वे प्रवासियों के इंग्लैंड में प्रवेश के सख्त खिलाफ हैं और रिफार्म यूके उनके अति-दक्षिणपंथी विचारों को फैलाने का उनका नया मंच है। इस टिप्पणी के बाद नाइजेल पर नस्लवादी होने का आरोप लग और वे मीडिया में छाए रहे। पैनी मोरडोंट, जो कंजरवेटिव पार्टी का नेता बनने की दौड़ में सुनक के प्रतिद्वंद्वी रह चुके हैं, तक ने एक चुनावी डिबेट में कंजरवेटिव पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि “सुनक का रवैया पूरी तरह गलत था”।
सुनक से मुक्ति पाने की जनता की इच्छा का परिणाम सुनक को स्वयं और उनकी पार्टी को चुनावी हार के रूप में भुगतना पड़ेगा। ऐसा कहा जा रहा है कि सुनक को भी अपने निर्वाचन क्षेत्र रिचमंड एंड नोरथेलेटन में हार का सामना करना पड़ सकता है।
सो लेबर पार्टी के नेता केयर स्ट्रामर के सुर्खियां हासिल करने का अब वक्त है। 61 साल के स्ट्रामर ने 2020 के बसंत में कोर्बेयन का स्थान लिया था। उन्होंने लेबर पार्टी को एक बार फिर एक मध्यमार्गी दल बना दिया है, जो कोर्बेयन के दौर में वामपंथी विचारधारा वाला दल हो गया था। वे सफेद रंग की पूरी बांह की कमीज पहनना पसंद करते हैं जिसकी बाहें मुड़ी रहती हैं। वे गंभीर और कूल दिखना चाहते हैं – एक ऐसा व्यक्ति जो आपको अपना लगे। उनका सूत्र वाक्य है वे किसी भी मुद्दे पर अपना नजरिया जाहिर करने के लिए एक ही जुमले का इस्तेमाल करते हैं: “पहले देश फिर पार्टी”। और इनमें वामपंथी नजरिए से जुड़े वायदों से पीछे हटने का फैसला भी शामिल है। यहाँ तक कि लेबर पार्टी, जिसका इस चुनाव में प्रदर्शन शायद सबसे बेहतरीन होगा, का चुनावी नारा केवल एक शब्द का है –चेंज। वे वही कह रहे हैं जो लोग कह रहे हैं, जो लोग सुनना चाहते हैं और जिस पर अमल होते देखना चाहते हैं।
ब्रिटेन के लोग ‘चेंज‘ के लिए आतुर हैं, विशेष रूप से जो युवा और बेचैन हैं। ब्रेक्सिट, घर खरीदने में समस्याएं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना में समस्याएं, जीवनयापन का बढ़ता खर्च –सबसे युवा गुस्से में हैं। मैंने जिन लोगों से बात की उनमें से कई लेबर पार्टी को वोट देना तय कर चुके हैं। मगर एक ने मुझसे कहा कि वोट देने का आखिर मतलब क्या है। यही बात मैंने भारत की जनता से भी सुनी थी – राजनेता लोगों या देश के लिए काम नहीं करते, वे केवल अपने लिए काम करते हैं। वह निराश-हताश लग रहा था। और वह अकेला नहीं है। ऐसा बताया जाता है कि कई युवा इसी आधार पर वोट देना का इरादा छोड़ चुके हैं।
तो ब्रिटेन में ‘चेंज‘ से उम्मीद है तो निराशा का आलम भी है।
चार जुलाई दिलचस्प दिन होगा। ब्रिटेन के लोग चाय और स्कोन के साथ इसका मज़ा लेंगे। मगर बाकी दुनिया की भी इसमें रूचि होगी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)