सचिन पायलट अपना जोश खो चुके हैं। जो दृढ़ संकल्प और उत्साह मैंने उनमें 2018 के चुनाव के दौरान देखा था वह अब कहीं नजर नहीं आता। उनकी आंखों की चमक फीकी पड़ चली है और चाल में अब वह फुर्तीलापन नहीं है। उनके भाषण छोटे और नीरस हैं। वे कांग्रेस हाईकमान के प्रति शुक्रगुजार तो हैं लेकिन उनके व्यवहार में गुस्सा भी साफ झलकता है। दौसा में राहुल गांधी की सभा में तैनात एक पुलिस कांस्टेबिल ने स्थिति की बहुत बढ़िया व्याख्या की: “सचिन पायलट का मूड नहीं है लड़ने का। और सही भी है। उनके साथ बहुत गलत हुआ था”।यह स्पष्ट नजर आ रहा था कि इस सभा में बड़ी संख्या में मौजूद लोग पायलट समर्थक थे और वे खुलकर कह रहे थे कि “हम यहां सचिन भैया की खातिर आए हैं।” उनके लिए राहुल गाँधी का आकर्षण, उन्हें सुनने में रूचि या स्थानीय चेहरे ज्यादा मायने नहीं रखते। वे सिर्फ पायलट के लिए आए थे।
लेकिन 2018 के चमकीले-जोशीले पायलट इस बार ढीले-ढाले नजर आ रहे हैं। वे सभा में राहुल गांधी के पहुंचने के दस मिनट बाद पहुंचे – इसके पीछे की वजह उनकी नाराजगी थी या पहले की सभाओं मे उनकी व्यस्तता, यह कहना मुश्किल है।
और यह सिर्फ पायलट की बात नहीं है। उनके समर्थक, उनके गुर्जर समाज के लोग भी उदासीन हैं। लेकिन पायलट के प्रति उनका समर्थन कम नहीं हुआ है। वे अभी भी उनके और उनकी विरासत के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं। लेकिन उनके हर वाक्य के अंत में ‘मगर’ शब्द जुड़ा रहता है। यही वजह है कि पायलट के इस खानदानी किले और कांग्रेस के गढ़ दौसा में भी मुकाबला एकतरफ़ा नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि लड़ाई त्रिकोणीय है। कांग्रेस ने मुरारीलाल मीणा को उम्मीदवार बनाया है, जिन्होंने सन् 2013 में बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीता था और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। सन् 2018 में मीणा ने भारी अंतर से भाजपा के शंकरलाल शर्मा को हराया था। भाजपा ने इस बार भी शर्मा को ही टिकट दिया है। लेकिन चुनावी गणित कांग्रेस और मीणा के खिलाफ इसलिए हो गया है क्योंकि आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के उम्मीदवार के रूप में राधेश्याम मीणा खड़े हो गए हैं।
नंगल बेरसी के निवासी महेन्द्र का दावा है कि मुरारीलाल मीणा (जो कांग्रेस के उम्मीदवार हैं) पक्के तौर पर मुश्किल में है। मेरे यह पूछने पर कि लोग किसे वोट देंगे, उन्होंने कहा कि उनके गांव के लोग राधेश्याम मीणा का समर्थन कर रहे हैं जो उसी गांव के रहने वाले हैं।
नंगल बेरसी, जो दौसा से 14 किलोमीटर दूर है और जयपुर के काफी नजदीक है, दो-ढाई हजार आबादी वाला गांव है, जहां सभी जातियों के लोग रहते हैं और जो गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। महेन्द्र से मेरी मुलाकात जिस जगह हुई उसके नजदीक ही 18 साल की कई लड़कियां एक हैंडपंप पर मौजूद थीं जो शाम को पानी के लिए लगने वाली लंबी कतार से बचने के लिए दोपहर में जल्दी आ गईं थीं।“रोजाना दो बार हमें यह झेलना पड़ता है,” एक लड़की ने कहा।
राजस्थान में जल संकट जारी है और यह एकमात्र राज्य है जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हर नल से जल योजना असफल रही है। नंगल बेरसी और इसके आसपास के इलाके में रहने वाले ग्रामीणों का गुस्सा साफ नजर आता है। एक नुक्कड़ के सब्जी बाजार में खड़े सभी ग्रामीण एक स्वर से पूछते हैं, “कहां है पानी?” “ईआरसीपी पर काम क्यों नहीं हो रहा है,” वे जानना चाहते हैं।“कब तक चलेगी पालिटिक्स पानी पर?” एक महिला दुख भरी आवाज में कहती है। पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके क्रियान्वयन की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही है। इसके अंतर्गत चंबल और उसकी सहायक नदियों का पानी दौसा सहित 13 जिलों में सिंचाई, कारखानों के लिए और पेयजल के रूप में उपयोग के लिए मुहैया कराया जाना है। चुनाव के पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि राज्य सरकार केन्द्रीय सहायता की प्रतीक्षा किए बिना स्वयं के संसाधनों से ईआरसीपी क्रियान्वित करेगी। इस बीच जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दिल्ली-बंबई एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के लिए इस क्षेत्र में आए थे, तो उन्होंने कहा था कि भाजपा की सरकार बनने पर सबसे पहले जलसंकट समाप्त किया जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि पानी को लेकर राजस्थान में राजनीति की जाती रही है और की जा रही है, और यह यहां एक बड़ा मुद्दा है। मैं कुछ देर के लिए ही इस गांव में थी और मैंने दो बार पानी के टैंकर को गुजरते देखा।
जलसंकट के साथ ही दौसा विकास से भी महरूम रहा है। राज्य की राजधानी से कुछ ही किलोमीटर दूर, एक प्रतिष्ठित सीट, राजेश पायलेट और सचिन पायलट का गढ़, जहां से पायलट के खासमखास मुरालीलाल मीणा दो बार जीते, वहां अभी भी सीवेज लाईन जैसी मूलभूत सुविधाओं को लेकर शिकायतें सुनाई पड़ रही हैं! गांवों के भवन जर्जर स्थिति में हैं और बिजली कुछ ही घंटे के लिए आती है। पानी और बिजली की कमी के चलते किसानों की हालत खस्ता है। अन्य राज्यों की तरह यहां भी जबरदस्त बेरोजगारी है। इसलिए दौसा के लोगों में बहुत नाराजगी है। मुरारीलाल मीणा भी लोगों से जीवंत संपर्क स्थापित करने में असफल रहे हैं। लेकिन मलारना गांव के महेश गुर्जर के लिए पानी, बिजली और बेरोजगारी महत्वपूर्ण नहीं है। जाति का सम्मान और प्रतिष्ठा ज्यादा मायने रखती है। उनका प्रश्न है, “सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का वायदा किया गया था, पर हुआ क्या?” ऐसा माना जा रहा था कि गुर्जर इस बार भाजपा को वोट देंगे, लेकिन जमीन पर माहौल वैसा नजर नहीं आता है। दौसा में भले ही मुकाबला कड़ा माना जा रहा हो लेकिन ऐसा सिर्फ सतही तौर पर है। लोग फैसला ले चुके हैं। समुदाय में सचिन पायलट के प्रति आकर्षण कम हो गया है मगर जैसा आक्रोश उनके मन में है, उसकी गूंज गुर्जरों में भी नजर आती है। और “गहलोत तुझसे बैर नहीं, मंत्री/विधायक की खैर नहीं” का नारा, जिसकी प्रतिध्वनि शेष राज्य में जाहिर तौर पर सुनी जा सकती है, के विपरीत दौसा के लोगों का मूड “गेहलोत और विधायक तेरी खैर नहीं” का नजर आता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)