myanmar dictatorship: चार सालों से म्यांमार अनिश्चितता के भंवर में फंसा हुआ है। वहां आज कोई जीतता दिखता है तो कल किसी और का पलड़ा भारी लगता है।
बगावत के झंडाबरदारों – जिनमें सैकड़ों गुट शामिल हैं और जिनमें से कईयों के परस्पर विरोधी लक्ष्य हैं – ने कई मोर्चों पर सेना पर जीत हासिल की है। दो दिन पहले देश की सीमा के निकट सेंगियांग क्षेत्र में म्यांमार की सेना और विद्रोही बलों के बीच जबरदस्त जंग शुरू हुई।
यह इलाका मणिपुर के केमजांग जिले के पास है। इस लड़ाई के चलते 3,000 से अधिक नागरिकों को अपने घरों से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है और मणिपुर हाई अलर्ट पर है।
म्यांमार में गृहयुद्ध के कारण 40 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। देश की आधी से अधिक आबादी गरीबी से जूझ रही है। देश के आधे से भी कम लोगों को बिजली उपलब्ध हो पा रही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार रेखाइन प्रांत में गंभीर अकाल का खतरा है और रोंहिग्या मुसलमानों पर इसका सबसे ज्यादा असर होने की आशंका है।(myanmar dictatorship)
रोहिंग्या दो पाटों के बीच पिस रहे हैं। एक ओर फौज रोहिंग्या मर्दों की जोर-जबरदस्ती से भर्ती कर रही है तो दूसरी ओर, आर्कयन आर्मी उन पर सैनिक शासन का साथ देने का आरोप लगा रही है।
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चीन का दबाव इसी साल चुनाव करवाने पर(myanmar dictatorship)
सत्ता पर बैठी सैन्य सरकार के खिलाफ चार साल पहले शुरू हुआ प्रतिरोध जारी है। बीच-बीच में यह बहुत तीखा हो जाता है। बीबीसी का अंदाज़ा है कि मयांमार का केवल 21 प्रतिशत क्षेत्र सैनिक सरकार के नियंत्रण में है।
सरकार एक ओर एनएलडी के बचे-खुचे हिस्से की नेशनल यूनिटी गर्वमेंट द्वारा गठित पीपुल्स डिफेन्स फोर्स के साथ लड़ रही है तो दूसरी ओर उसे उन जातीय हथियारबंद गिरोहों से भी लड़ना पड़ रहा है जो लंबे समय से सरकार की खिलाफत करते आ रहे हैं।
कुछ महीने ऐसे होते हैं जब सेना इनका बहुत नुकसान करने में कामयाब रहती है क्योंकि उसका अभी भी बड़े शहरों और देश के केन्द्रीय भाग पर कब्जा है।(myanmar dictatorship)
अक्टूबर 2023 से अब तक विद्रोही यदि उम्मीद से ज्यादा कामयाबी हासिल कर सकें हैं तो इसका एक कारण यह है कि चीन ने सीमा पर अपराधियों को काबू में करने में सैन्य शासन के नाकामयाब रहने से नाराज जातीय सशस्त्र समूहों के एक गठबंधन को अपना समर्थन दे दिया था।
मगर अब चीन ने हथियारों एवं अन्य महत्वपूर्ण चीजों को उन तक पहुँचाना बंद कर दिया है क्योंकि उसे लगता है कि सैन्य शासन के कायम रहने में ही उसकी भलाई है।
इससे वह इस क्षेत्र में अमेरिका की दखल रोक सकेगा और देश में स्थिरता कायम हो सकेगी। यह साफ़ है कि चीन का सबसे अधिक दबाव इसी साल चुनाव करवाने पर है।
कई सैनिकों ने बगावत कर दी
हालांकि चुनाव न केवल दिखावा बल्कि एक मजाक होंगे क्योंकि 21,000 राजनैतिक कैदी जेलों में बंद है और विपक्षी ताकतों ने चुनावों में बाधा डालने का निश्चय किया है।(myanmar dictatorship)
लेकिन देश के अंदर तनाव बढ़ रहा है और सैन्य सरकार के प्रमुख मिन आंग हलाइंग को पद से हटाने की मांग जोर पकड़ रही है। हाल के वर्षों में कई युवा सेना में भर्ती होने से इंकार कर चुके हैं। कई सैनिकों ने बगावत कर दी है। अन्य कई मारे गए हैं।
ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद के दौर में, यह डर फैल रहा कि दुनिया के अन्य हिस्सों में जारी कई संकटों के चलते विश्व समुदाय सैन्य शासन द्वारा छोटी-मोटी छूटें दिए जाने के बदले उसके साथ समझौता करने के लिए राजी हो सकता है।
इस बीच ऐसी अटकलें जोर पकड़ रही हैं कि बांग्लादेश, चीन, भारत और थाईलैंड की सीमा पर सैन्य शासन का नियंत्रण पूरी तरह समाप्त हो सकता है।(myanmar dictatorship)
इससे सेना का रवैया और अधिक निर्मम होने का खतरा है। वर्तमान में कई शरणार्थी भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि 20,000 से अधिक चिन शरणार्थी सीमा पार कर मिजोरम के सीमावर्ती जिलों में घुस चुके हैं। वे राज्य के दक्षिणी जिलों मे म्यांमार की सीमा से सटे क्षेत्रों में में बने शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।
सैन्य शासन का आतंकी राज पिछले चार सालों से जारी है। लेकिन उनके निर्मम तौर-तरीके भी गृहयुद्ध में उन्हें जीत हासिल नहीं करा सके हैं और प्रतिरोध निडरतापूर्वक जारी है। जाहिर है कि देश की जनता इसके विध्वंसकारी परिणाम भुगत रही है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)