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08-06-2025 Vol 19

म्यांमार में सबकुछ बिखरा

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म्यांमार में था ही क्या जो नष्ट हो गया? दिल को चीरने वाला यह प्रश्न एक अनुभवी पत्रकार का था जिन्होंने दशक-दर-दशक म्यांमार की बर्बादी के असंख्य दौर देखे हैं।

मार्च की 28 तारिख को म्यांमार में धरती कांपी और देश की कई कमज़ोर दीवारे झटके से भरभरा कर गिर गई। अब यह साफ़ नज़र आ रहा है कि म्यांमार पहले से कितना कमज़ोर था। सन 1934 में अंग्रेजों द्वारा इरावदी नदी पर बनाया गया ऐतिहासिक एवा रेल और सड़क पुल टूट कर नदी में गिर गया। मांडले में पुराने शाही महल को भारी नुकसान हुआ। देश में पहले से ही बहुत कुछ बिखर चुका था। पिछले चार साल से वहां फौज का राज है और देश में गृहयुद्ध जारी है। भूकंप से बहुत बर्बादी नहीं हुई – क्योंकि बर्बाद होने के लिए कुछ ख़ास था ही नहीं। मगर भूकंप ने लोगों की उम्मीदों को ज़रूर तोड़ दिया- एक बेहतर भविष्य की उम्मीदों को।

सन 2021 से म्यांमार फौज के बेरहम चंगुल में फंसा छटपटा रहा है। फौजी बगावत के बाद देश में गृहयुद्ध शुरू हुआ। गुज़रे चार सालों में इस युद्ध के कारण 35 लाख लोगों को अपने घर छोड़ कर भागना पड़ा है। भूकंप के पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह अंदाज़ा लगाया था कि देश के करीब 20 लाख रहवासियों यानि करीब 35 फीसदी आबादी को इस साल (2025) मानवीय सहायता की ज़रुरत पड़ेगी और इसके लिए करीब 1।1 बिलियन डॉलर दरकार होंगे। म्यांमार में जब धरती डोलना शुरू हुई तब तक इस धनराशि का 5 प्रतिशत भी इकठ्ठा नहीं किया जा सका था।

दुनिया को आशा थी कि भूकंप के बाद गृहयुद्ध रुक जायेगा। मगर वह बाकायदा जारी है। सेना के खिलाफ लड़ रहे समूहों ने कुछ वक्त के लिए युद्धबंदी का ऐलान किया है। मगर फौज – जो 2021 की बगावत के बाद से सत्ता पर काबिज है – ने हमले और तेज कर दिए हैं। हवाई हमलों में तेजी आई है और मलबे के ढेरों में अपनों को तलाश रहे नागरिकों के आसपास बम बरस रहे हैं। म्यांमार के सत्ताधारी जनरल पहले भी प्राकृतिक आपदाओं का इस्तेमाल अपनी ताकत बढ़ाने के लिए करते आए हैं। सन 2021 में मोचा चक्रवात और फिर 2023 में यागी तूफ़ान के बाद जनरलों ने विदेशी मदद देश में नहीं आने दी थी। प्रतिरोधी समूहों के नियंत्रण वाले इलाकों में राहत दलों के पहुँचने में अड़ंगे लगाए थे। फौज का देश के सीमाई इलाकों में बड़े क्षेत्र पर नियंत्रण कमज़ोर हो रहा है। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय मदद मांगने के बाद भी हवाई हमले जारी रहे। हालांकि अंततः फौज कुछ समय के लिए युद्ध बंद करने के लिए राजी हो गयी मगर डर यह है कि देश पर से दुनिया का ध्यान हटते ही बमबारी का सिलसिला फिर शुरू हो जायेगा।

28 मार्च को भूकंप से सबसे ज्यादा नुकसान उन शहरों में हुआ है जिन पर सेना का नियंत्रण है। शायद इसलिए सेना ने पूरी दुनिया से मदद की गुहार लगाई है – जो वह सामान्यतः नहीं करती – और ‘स्वेच्छा’ से बमबारी बंद कर दी है।

नतीजे में इमदाद आसानी से म्यांमार पहुँच रही है। भारत ने ऑपरेशन ब्रह्मा के तहत 15 टन राहत सामग्री और 100 स्वास्थ्य कर्मी वहां भेजे हैं जो अब तक करीब 800 लोगों का इलाज कर चुके हैं। चीन, जिसके फौजी सरकार से नजदीकी सम्बन्ध हैं, ने मलबे में दफन लोगों को ढूँढने और बाहर  निकालने वालों की एक टीम भेजी है और 1।4 करोड़ डॉलर की मदद की घोषणा की है। ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन, मलेशिया, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया ने भी मदद की पेशकश की है। अमरीका, जिसने डोनाल्ड ट्रम्प के राज में विदेशी मदद के लिए तय रकम में काफी कटौती की है, ने भी 20 लाख डॉलर की मदद का ऐलान किया है और युएसऐड की एक टीम भी भेजी है।

मगर सवाल यह है कि क्या इस बर्बाद हो चुके देश का पुनर्निर्माण हो सकेगा? क्या उसकी पुरानी शान कभी लौटेगी? यदि हाँ, तो इसकी कीमत कौन चुकाएगा।

इस समय तो देश में बदहाली का आलम है। कम से कम 20 शहरों में भारी नुकसान हुआ है। पहले से युद्ध और हवाई हमलों में क्षतिग्रस्त हो चुकी शहरों की नागरिक सुविधाओं को भूकंप ने लगभग पूरी तरह नष्ट कर दिया है। फौजी सरकार के मुखिया मिन ऑन हांग ने कहा है कि जो इमारतें गिरी हैं उन्हें लापरवाही से बनाया गया था। उन्होंने यह दावा भी किया कि मारेवीजेय बुद्ध की मूर्ति और उसका सिंहासन अपनी जगह से हिला तक नहीं है। म्यांमार की नई राजधानी में स्थित इस बौद्ध विहार को मिन ऑन हांग ने अपनी शान दिखाने के लिए बनवाया है। वे अपने आप को बौद्ध धर्म का रक्षक बताते हैं और कहा जाता है कि वे घोर अन्धविश्वासी हैं। भूकंप के बाद से फौजी सरकार का प्रचार तंत्र लगातार जनता का मनोबल बढ़ाने और अपने सैनिकों को देश का रक्षक बताने में लगा हुआ है।

मगर यह साफ़ नहीं है कि जंग में फँसी और दुनिया से अलग-थलग फौज देश को फिर से कैसे बना पायेगी। चाहे कितनी ही डींगें हांकी जा रही हों और चाहे जो भ्रम फैलाया जा रहा हो, सच यह है कि फौजी सरकार कंगाल है और पूरी दुनिया ने उससे दूरी बना ली है। विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसी संस्थाएं ही सरकार को पुनर्निर्माण के लिए ज़रूरी अरबों डॉलर मुहैय्या करवा सकती हैं। मगर फौजी सरकार की न तो इन संस्थाओं तक पहुँच है और अगर हो भी, तो वे इस सरकार को वैध नहीं मानेंगीं।

भूकंप के पहले तक आशा की एक किरण थी भी। प्रतिरोधी आन्दोलन और जनता को यह लग रहा था कि वे फौजी सरकार को उखाड़ फेंकने में सफल हो जाएंगे। गार्डियन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह उम्मीद जताई गई थी कि लोग एक होंगे और एक साथ मिलकर देश का विकास करेंगे।

मगर भूकंप ने सब कुछ बदल दिया है। भूकंप के झटकों ने देश को गहरे तक झकझोर दिया है। इमारतों, मकान और सड़कें तो तबाह हुई ही हैं, देश भावनात्मक रूप से भी चुक गया है। वह आर्थिक लकवे और राजनैतिक दिशाहीनता का शिकार है। लोगों ने सिर्फ घर और शहर नहीं खोए हैं। उन्होंने उम्मीद भी खो दी है। वे असहाय महसूस कर रहे हैं। म्यांमार में भले ही नष्ट होने के लिए कुछ न रहा हो लेकिन लोगों का मनोबल, उनका उत्साह और जोश तो था ही। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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