nayaindia France Election फ्रांस में भी लिबरल आउट?
श्रुति व्यास

फ्रांस में भी लिबरल आउट?

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फ्रांसविकल्पके तलाश में दक्षिणपंथी लोक-लुभावनवाद के चंगुल में फंसने की कगार पर है।  तीन हफ्ते पहले इमैनुएल मैक्रों ने संसद भंग कर मध्यावधि चुनाव का जुंआ खेला था। वजह यूरोपीय संघ के चुनाव में उनकी नेशनल रैली (आरएन) पार्टी की बुरी हार थी। उन्होंने चुनाव के कदम को यह कहते हुए सही ठहराया कि इससे मतदाताओं को “अपनी पसंद जाहिर करने का मौकामिलेगा। लोग साफ़ कर सकेंगे कि वे मरीन लु पेन की आरएन पार्टी के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर देश पर आखिर किसका राज चाहते हैं?  मैक्रों का यह भी तर्क था कि 2022 में नेशनल असेम्बली में उनके मध्यमार्गी गठबंधन के बहुमत खोने के बाद से सदन में “अव्यवस्था” के हालात हैं जिससे कानून बनाना कठिन हो गया है। 

लेकिन 30 जून को यह साफ जाहिर हुआ कि जल्दबाजी में लिया गया यह फैसला इमैनुएल मैक्रों और उनके भविष्य के लिए भी घातक साबित होने जा रहा है।

संसद के निचले सदन के लिए हुए पहले दौर के मतदान –  जो 1977 के बाद सर्वाधिक था में  मरीन लु पेन के धुर दक्षिणपंथी दल ने जबरदस्त बढ़त बना ली है। एक्सिट पोल्स से संकेत है कि नेशनल रैली ने पूरे देश में लगभग 34 फीसद वोट हासिल किए और वामपंथी गठबंधन दूसरे स्थान पर रहा। इमैनुएल मेक्रों का गठबंधन इन दोनों से बहुत पीछे, तीसरे स्थान पर है। आरएन को करीब 1.20 करोड़ वोट मिले जो उसे पिछले संसदीय चुनाव में मिले 42 लाख वोटों का लगभग तीन गुना हैं। इस नतीजे से  लु पेन की पार्टी सत्ता हासिल करने के बहुत करीब पहुंच गई है। अंतिम और निर्णायक मतदान 7 जुलाई (अगले इतवार) को होगा। और यदि इसमें भी आरएन जीत हासिल करती है, जैसी कि भविष्यवाणी की जा रही है, तो फ्रांस के इतिहास में पहली बार कोई अति-दक्षिणपंथी पार्टी संसदीय चुनाव जीतकर अपनी सरकार बनाएगी।

ऐसा होने पर मैक्रों को सत्ता सांझा करनी पड़ेगी। वह भी उन लोगों के साथ जो उनके धुर विरोधी हैं। उन्हें लुपेन के पिट्ठू और टिकटाक सितारे जोर्डन बारडेला को प्रधानमंत्री नियुक्त करना पड़ेगा। हालांकि रविवार रात तक पेरिस, लिओन, लीन, नेंनटीस एवं स्ट्रेसबर्ग जैसे शहरों में हालात पूरी तरह जोर्डन बारडेला के अनुकूल नहीं थे जहां हजारों लोगों ने सड़कों पर उनकी पार्टी के खिलाफ प्रदर्शन किया। राजधानी के प्लेस डे ला रिपब्लिक पर हजारों लोग जमा हुए और वामपंथी गठबंधन के प्रमुख नेताओं ने उन्हें संबोधित करते हुए अति दक्षिणपंथियों की आलोचना की। हालांकि दक्षिणपंथी बारडेला ने साफ़ कहा है कि वे तभी पद स्वीकार करेंगे जब उन्हें संसद में बहुमत का समर्थन होगा।

ऐसे में सभी को यह सवाल परेशान और आक्रोशित कर रहा है कि मैक्रों जैसे राष्ट्रपति, जिन्होंने सुधारों के जरिए देश के हालात बेहतर बनाए, कैसे इस तरह फँस गए। मैक्रों के कार्यकाल में फ्रांस में काफी उन्नति हुई है। रोशनी, प्रेम और फैशन का शहर पेरिस इससे आगे बढ़कर बहुत कुछ बन गया है। अब वहां बड़ी संख्या में टेक्नोलॉजी कंपनियां कार्यरत हैं, वह बड़ा बैंकिग केन्द्र है जो लंदन का मुकाबला कर रहा है, जिससे वहां प्रतिभा एवं पूंजी आ रही है। शहर ओलंपिक की तैयारी कर रहा है। वो जगमग है। उसकी मस्ती और जोश लौट आये हैं। 

लेकिन जीवंतता और चमक-दमक दुबारा हासिल होने के बावजूद मतदाताओं का मैक्रों और शासन चलाने के उनके तौर-तरीकों से मोहभंग है। इसकी एक वजह जल्दबाजी में लिया गया मध्यावधि संसदीय चुनाव करवाने का उनका फैसला भी है। यह चुनाव अपने निर्धारित समय के तीन साल पहले हो रहे हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फ्रांसीसी लोग लुपेन की नेशनल रैली को एक सशक्त विकल्प मान रहे हैं। नेशनल रैली ने विवादास्पद पेंशन सुधारों को वापस लेने की बात कही है जिन्हें मैक्रों ने मनमाने ढंग से लागू किया था। इसके साथ ही उसने संपत्ति कर दुबारा लगाने और बिजली व ईधन पर लगाए जाने वाले वैट में कमी करने का वायदा भी किया है। उसने प्रवासियों के आगमन पर बंदिशें लगाने, ‘इस्लामवादियोंको देश से वापिस भेजने, सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने पर पाबंदी लगाने और यूरोपीय संघ के अन्य देशों की सीमाओं पर पहले की तरह के नियंत्रण दुबारा लगाने के संकल्प भी बताए है। जाहिर है कुछ लोगों को दूसरों से ज्यादा हक़ दिए जा रहे हैं, यह सोच कई लोकतांत्रिक देशों को कट्टर दक्षिणपंथ की बाँहों में ढकेल रही है। 

फ्रांस बदलाव के कगार पर खड़ा है। वहां अनिश्चितता का दौर शुरू हो सकता है। भारत की तरह, ‘विकल्पकी अधूरी तलाश के विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)   

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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