अमेरिका और भारत एक-दूसरे से करीब आठ हज़ार मील दूर है। मगर वहां की हालिया राजनीति, भारत जैसी ही लग रही है। हालांकि किरदार अलग-अलग हैं। (donald trump )
अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति और भारत के 15वें प्रधानमंत्री का अंदाजे बयां काफी मिलता-जुलता है। चार मार्च को डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। वह उनका पांचवां (और नए कार्यकाल का पहला) संबोधन था।
वे करीब एक घंटा 40 मिनट बोले। किसी भी राष्ट्रपति का अब तक का सबसे लंबा भाषण था। मगर जिस संसद को वे संबोधित कर रहे थी, वह बंटी हुई थी। और संसद के ज़रिये वे जिस अमेरिका को संबोधित कर रहे थे, वह और भी बुरी तरह से बंटा हुआ था।
भाषण शुरू होते ही डेमोक्रेट सदस्यों ने शोरगुल मचाना शुरू कर दिया। उन्होंने सीटियाँ बजाईं और प्लेकार्ड लहराए। इनमें से कुछ पर लिखा था, “मस्क चोर है”, मेडिकेड को बचाओ” और “झूठ”, “एकदम झूठ”। (donald trump
फ्लोरिडा से डेमोक्रेट सदस्य मैक्सवेल फ्रॉस्ट की कमीज़ पर लिखा था, “यहाँ कोई राजा नहीं है”। कुछ सदस्य गुलाबी रंग के कपडे पहने हुए थे क्योंकि वे ट्रंप प्रशासन की नीतियों के महिलाओं पर पड़ रहे नकारात्मक असर की ओर ध्यान खींचना चाहते थे। कई सांसद भाषण के अधबीच में उठ पर बाहर चले गए।
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ट्रंप पर कोई असर नहीं पड़ा
मगर इस सबका ट्रंप पर कोई असर नहीं पड़ा। वे उसी अंदाज़ में बोलते रहे। उन्होंने जोरदार शब्दों में “अमेरिका की वापसी” के घोषणा की। उन्होंने कहा कि वे सरकार को एकदम नया स्वरुप दे रहे हैं। donald trump )
उन्होंने अपने विरोधियों पर ताने कसे। अपनी सियासी और कानूनी जीतों की लिस्ट गिनाई। उन्हें सदस्यों के गुस्से से ज़रा भी फर्क नहीं पड़ रहा था। बल्कि उन्होंने आग में घी डालने के लिए बाइडन को इतिहास का सबसे बदतर राष्ट्रपति और डेमोक्रेट्स की नीतियां को पागलपन बताया।
रिपब्लिकन ट्रंप के जयकारे लगा रहे थे। वही डेमोक्रेट्स एक बार भी ताली बजाने को तैयार नहीं थे। टेक्सास के डेमोक्रेटिक प्रतिनिधि एआई ग्रीन रुक-रुक कर जोर-जोर से चिल्ला रहे थे, “आपको जनादेश हासिल नहीं है।”
जब उन्होंने बैठने से इंकार कर दिया तो स्पीकर माइक जॉनसन ने उन्हें सदन से बाहर करने का आदेश दिया। ऐसा अमेरिकी संसद में कम ही होता है। (donald trump )
जहाँ तक ट्रंप के भाषण का सवाल है, उसमें तोड़े-मरोड़े गए तथ्यों, गुमराह तर्कों और सफ़ेद झूठों की भरमार थी। ट्रंप ने कहा कि उन्होंने और उनके प्रशासन ने ‘कॉमन सेंस क्रांति” की शुरुआत की है मगर डेमोक्रेट उसे समझ ही नहीं पा रहे हैं।
ट्रंप के लहजे से जाहिर था कि वे वहां बैठे अपने विरोधियों को हिकारत की निगाह से देखते हैं। उन्होंने चुनाव में अपनी जीत की डींगे हांकी। अदालती कार्यवाहियों से बच निकलने में अपनी कामयाबी के कसीदे काढ़े और बार-बार कहा कि अमेरिका में बाइडन से बुरा राष्ट्रपति आज तक नहीं हुआ। (donald trump)
हम भारतीयों के लिए यह आम (donald trump )
ट्रंप का भाषण ख़त्म होने के बाद पत्रकारों ने उसका विश्लेषण शुरू किया। उन्हें यह देख कर धक्का लगा कि वह कितनी कटुता, कितनी आक्रामकता से लबरेज था। उन्हें लगा कि राष्ट्रपति और विपक्ष के बीच प्रतिद्विन्दिता नहीं, बल्कि शत्रुता है।
मगर हम भारतीयों के लिए यह आम है। हमने कई बार देखा है कि हमारी संसद में पक्ष और विपक्ष एक दूसरे के जानी दुश्मन नज़र आते हैं, वे एक दूसरे के खिलाफ ज़हर उगलते हैं। हमारे प्रधानमंत्री कांग्रेस को नफरत फ़ैलाने की फैक्ट्री बता चुके हैं। (donald trump )
वे विपक्ष के नेता राहुल गाँधी पर ही हमलावर नहीं होते। वे उनकी दादी और उनके परनाना पर भी ज़हर बुझे तीर छोड़ते हैं। राहुल गाँधी को भाजपा के नेता और कार्यकर्ता पप्पू बताते हैं और संसद में लगभर हमेशा ही हंगामे और अफरातफरी का माहौल रहता है।
विपक्ष बात-बात पर वाकआउट करता है, विपक्षी सदस्यों को निलंबित किया जाता है, सत्ताधारी दल के शीर्ष नेता भी करीब-करीब गाली-गुफ्तार करते हैं और स्पीकर या अध्यक्ष चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं। भारत ने अब स्थाई तौर पर गहरे राजनैतिक विभाजनों के बीच रहना सीख लिया है।
इस बीच अमेरिका में भाषण के बाद, रिपब्लिकनों ने डेमोक्रेट्स पर हल्ला बोला। उनका कहना था कि विपक्ष ने राष्ट्रपति का अपमान किया है। मीडिया ने कहा कि राष्ट्रपति ने इस परंपरागत भाषण को पार्टी का कार्यक्रम बना दिया। ट्रंप हमेशा ऐसा व्यव्हार करते हैं मानों चुनाव बस एक हफ्ते दूर हों। (donald trump )
और फिर डेमोक्रेट्स ने राहुल गाँधी के अमेरिकी संस्करण को राष्ट्रपति के भाषण का जवाब देने के लिए चुना। वे थीं सीनेटर एलीसा स्लॉटकिन। उन्होंने राहुल गाँधी की ‘मोहब्बत की दुकान’ की तर्ज पर डेमोक्रेट्स से कहा कि वे गुस्सा थूंके और अपने काम से ट्रंप को जवाब दें।
राजनीति की भाषा भी गंदली (donald trump )
जाहिर है दुनिया ऐसे दौर में हैं जब शीर्ष राजनीति की भाषा भी गंदली हो गई है। सामान्य शब्द अब काफी नहीं होते। हम एक-दूसरे की बातों को स्वीकार नहीं करते। हम यह विश्लेषण नहीं करते कि किन मामलों में हम एकमत हैं और किन मसलों पर हम में मतभेद हैं। (donald trump )
इसकी जगह हम केवल अपना गुस्सा दिखाते हैं। एथेंस के पतन से लेकर तानाशाही के उदय तक, थ्युसेडीसीज से लेकर जॉर्ज ओरवेल तक, सभी ज्ञानियों ने हमें बताया है कि अगर राजनीति में सार्वजनिक रूप से कही जाने वाली बातों का स्तर गिरता है तो वह यह संदेश देता है कि प्रजातंत्र असफल हो गया है और इसका अंत आज़ादियों पर रोक, नागरिकों के बीच कलह, तानशाही और अंततः हिंसा में होता है। क्या इस सच्चाई से हम खबरदार है?
हो सकता है कि अमेरिका के कुछ लोगों को ट्रंप का भाषण पसंद नहीं आया हो, वे उसकी खिलाफत करने पर आमादा हों। मगर अमेरिकियों के बड़े वर्ग को ट्रंप के भाषण का हर शब्द, हर वाक्य अच्छा लगा होगा। ठीक उसी तरह जैसे भारत के ज्यादातर लोग मोदी के भाषण को पसंद करते हैं।
आज अगर अमेरिकी राजनीति में हमें भारतीय राजनीति का प्रतिबिम्ब नज़र आ रहा है तो इसका कारण यह है कि राजनीति के शीर्ष पर वे लोग हैं जिन्हें आमजन पसंद करते हैं, उन्हे चाहते हैं। (donald trump )
उनके लिए वे मसीहा हैं, जो उनकी भाषा में बात करते हैं। शिष्टता ने राजनैतिक विमर्श से विदाई ले ली हैं। ट्रंप और मोदी दोनों ऐसी बातें कह रहे हैं जो एक विशेष दौर में, एक विशिष्ट स्थान पर और इससे भी बढ़कर एक विशिष्ट तबके को बहुत भाती हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)