Wednesday

12-03-2025 Vol 19

कनाडा में ट्रंप विरोधी नया प्रधानमंत्री!

कनाडा को हाल-फिलहाल के लिए नया प्रधानमंत्री मिल गया है। मार्क कार्नी ने तब तक के लिए जस्टिन ट्रूडो की जगह ले ली है जब तक स्थाई प्रधानमंत्री नहीं चुन लिया जाता। ध्यान रहे इस साल के 20 अक्टूबर के पहले चुनाव होना जरूरी है लेकिन ऐसा लगता है कि वसंत (जो कनाडा में मार्च से मई तक होता है) में चुनाव करवा लिया जाएगा।

कनाडा की राजनीति को अब हम दो हिस्सों में बांटकर समझ सकते  है- ट्रंप के पहले (बीटी) और ट्रंप के बाद(एटी)।

बीटी में कनाडावासी ट्रूडो और उनकी लिबरल पार्टी से आजिज आ चुके थे। वे उन्हीं पुरानी समस्याओं से जूझ रहे थे- बाहर से आने वालों की बढ़ती संख्या, रोजमर्रा की जिंदगी का बढ़ता खर्च, बढ़ते अपराध, चिकित्सा सेवाओं में कमियां आदि, आदि। नतीजे में उनका झुकाव कंजरेवेटिवों की ओर होने लगा था। उन्हें पियरे पोलीवरे में वह नजर आने लगा था जो फ्रांस में कईयों को ले पेन में या अमरीकियों को ट्रंप में या हमारे भारत में नरेन्द्र मोदी में नजर आता है। पियरे पोलीवरे मध्य दक्षिणपंथी पार्टी के नेता हैं और उनका ट्रूडो की ‘सत्यानाशी नीतियों’ का नैरेटिव केनेडियाईयों के दिलोदिमाग पर छा गया था। बीटी में उन्होंने ‘कॉमन सेंस की राजनीति” को वापिस लाने का वायदा किया था।

ट्रूडो निराश, हताश और लुटेपिटे नज़र आने लगे थे। उनकी पार्टी में स्थिति बहुत कमजोर हो गई थी, जिसके चलते उन्होंने स्वेच्छा से प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया। उन्हें अपने प्रति बढ़ती नफरत का अहसास हो गया था। ट्रंप के सत्ता में आने पर कनाडा से आने वाले माल पर 25 प्रतिशत का टैरिफ लगाने के ऐलान के बाद ट्रूडो के प्रति नाराजगी और आक्रोश और बढ़ गया। इसके चलते ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के पहले ट्रूडो के इस्तीफे की मांग ने जोर पकड़ लिया। उनके इस्तीफे के समय लिबरल्स को केवल 20 प्रतिशत केनेडियाईयों का समर्थन हासिल था।

लेकिन राजनीति में दो महीने का समय भी बहुत लम्बा होता है, खासकर ऐसे देश में जहां चुनाव नजदीक हों।  ट्रंप के व्हाइट हाउस में पहुँचने के बाद कनाडा की राजनीति का एटी (ट्रंप के बाद) दौर शुरू हुआ।

नए आंकड़ों के मुताबिक अचानक लिबरल्स के लिए लोगों का समर्थन लगभग 30 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। कुछ महीने पहले जिन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया था वे अब मुकाबले में वापिस आ चुके हैं। यह सब डोनाल्ड ट्रंप की वजह से हुआ है। उनके कारण कनाडावासियों का ध्यान देश के अन्दर की बजाय देश के बाहर के घटनाक्रम पर केन्द्रित है। वे अपनी प्राथमिकताओं पर दुबारा सोचने के लिए मजबूर हुए हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि अमेरिकी राष्ट्रपति से सौदेबाजी के लिए वे किस पर भरोसा कर सकते हैं। देश के राजनैतिक हालात में आया यह नाटकीय बदलाव यह बताता है  कि ट्रंप की आयात शुल्क संबंधी धमकियों और बार-बार कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की बात कहने से कनाडा के मतदाताओं के रूख में मूलभूत बदलाव हुआ है। ट्रंप की बातों से वे सारे अन्य मुद्दे पर्दे के पीछे चले गए हैं जो कनाडावासियों के लिए 20 जनवरी को ट्रंप के सत्ता संभालने के पहले तक अहम थे। अब वे सोच रहे हैं कि काश ट्रूडो ने इस्तीफा न दिया होता। लेकिन मार्क कार्नी के रवैये से उन्होंने राहत की सांस ली है। “मेरे जीवन ने मुझे इसी मौके के लिए तैयार होने में मदद की है”, कार्नी ने इतवार को लिबरल पार्टी समर्थकों की भीड़ को संबोधित करते हुए कहा। इस समय तो ऐसा लगता है कि बहुत से कनाडियाई उनसे सहमत हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि कनाडावासी ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से डरे हुए हैं और इसका कनाडा पर काफी असर पड़ेगा। ट्रंप द्वारा कनाडा से अमरीका में आयातित होने वाले हर माल पर 25 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाना, जिसमें से कई वस्तुओं पर इसे लागू करने की तारीख 2 अप्रैल तक बढ़ा दी गई है, कनाडा की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर देगा। यह इसलिए क्योंकि कनाडा अपने उत्पादन का 75 प्रतिशत हिस्सा अमरीका को निर्यात करता है। अधिकारियों का अनुमान है कि अगर आयात शुल्क हटाया नहीं गया तो इससे कनाडा में दस लाख तक नौकरियां ख़त्म हो सकती हैं, जिसके नतीजे में कनाडा आर्थिक मंदी के दौर में प्रवेश कर सकता है।

जहां तक लिबरल्स का सवाल है, कार्नी का प्रधानमंत्री बनना उनके लिए बहुत शुभ  है। कार्नी चूंकि ट्रूडो की सरकार से जुड़े नहीं रहे हैं, इसलिए वे किसी भी तरह के आरोपों से घिरे हुए नहीं हैं। बल्कि उन्होंने ट्रूडो की कई आर्थिक नीतियों को ख़ारिज किया है और अमेरिकी टैरिफ का सामना करने में कनाडा की अक्षमता के लिए फिजूलखर्ची को दोषी ठहराया है। उन्होंने दावा किया कि ट्रंप से सौदेबाजी करने और देश की बिगड़ी हुई आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए वे सर्वोत्तम व्यक्ति हैं। रायशुमारियों से यह पता लगता है कि कनाडा के मतदाता कार्नी को पसंद कर रहे हैं। हालांकि उन्हें कंजरवेटिव पार्टी से ज्यादा जनसमर्थन हासिल करने की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जिसे ताजा रायशुमारियों के मुताबिक 40 फीसदी मतदाताओं का समर्थन हासिल है।

राजनैतिक माहौल में आए इस बदलाव से कंजरवेटिव भी मतदाताओं को जो सन्देश देते आ रहे थे उस पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर हुए हैं। यह माना जाता है कि कार्नी जल्द ही चुनाव करवाएंगे और यदि ऐसा होता है तो कंजरवेटिवों को अपनी चुनाव प्रचार के मुद्दों पर दुबारा विचार कर उन्हें बदलना पड़ेगा। क्योंकि जिन मुद्दों के चलते कंजरवेटिव एक सशक्त विकल्प बन गए थे, वे अब महत्वपूर्ण नहीं रह गए हैं। अभी तो ट्रंप की धमकियों के कारण कनाडियों में देशभक्ति की भावना जबरदस्त जोर पकड़ रही है। कई कनाडावासी किराना दुकानों पर उपलब्ध अमेरिकी माल का बहिष्कार कर रहे है और यहां तक कि अमेरिका की यात्रा तक रद्द कर रहे हैं। वहां से आ रही खबरों और विश्लेषणों के मुताबिक देश के झंडे तले खड़ा होना कनाडा की राजनीति की मुख्य थीम बन गया है।

ट्रंप की आक्रामक बातों ने कनाडा के चुनावों को काफी दिलचस्प बना दिया है। कनाडावासियों के मन में बार-बार घुमड़ती चिंता महसूस की जा सकती है। और चुनाव कोई भी जीते, यह तय है कि न केवल ट्रंप का दुनिया भर के सरोकारों पर अपनी छाप छोड़ेंगे बल्कि वे कई देशों की राजनीति को नया आकार देंगे। आने वाला समय काफी दिलचस्प होने वाला है! (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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